छायावाद के अंतिम छत्रपति मूर्धन्य आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन

Loading

चंडीगढ़: 5 फरवरी बसंत पंचमी:- आरके विक्रम शर्मा/ करण शर्मा:— आज समूचा राष्ट्र बसंत पंचमी का पर्व खूब धूमधाम से मना रहा है। आया बसंत पाला उड़ंत,,,,, के मायने में आज के बाद सर्दी का प्रकोप धीरे धीरे कम होने लग जाता है। और आज तो शनिवार यानी शनि देवता का अपना दिवस है। सो यह बहुत ही उत्तम योग है। शनिवार के दिन ऋतुराज बसंत का आगमन भौतिक संसार के लिए लाभप्रद स्वस्थ दीर्घायु के वरदान से कम नहीं है।

आज ही के दिन सन 1916 में बिहार प्रांत के जिला गया में हिंदी छायावाद के अंतिम लौह स्तंभ कहे जाते अचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री का भी जन्म हुआ था। होनहार और पढ़ाई में अव्वल रहने वाले जानकी वल्लभ 18 साल की छोटी उम्र में ही वाराणसी हिंदू यूनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग से आचार्य की उपाधि से अलंकृत हुए थे। शुरू के दौर में जानकी बल्लभ जी ने संस्कृत भाषा में कविताएं लिखीं। लेकिन समकालीन वरिष्ठ महाकवि निराला जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने हिंदी में गद्य पद्य लिखने का बीड़ा सहर्ष उठाया। और पहला गीत किसने बांसुरी बजाई,,,,, लिख डाला। जो उस दौर से लेकर आज के दौर तक बहुत ही चित लगाकर सुना जाता है। उसके बाद शास्त्री जी ने तीर तरंग, मेघ गीत व अवंतिका सहित शिवा आदि आदि मुख्य काव्य संग्रह रच डालें। 07 अप्रैल 2011 को जाने-माने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री लेखनी के प्रबुद्ध का देहावसान हुआ। 2010 में प्रक्रिया गत औपचारिकता से असहमत होकर आपने पद्मश्री अवार्ड लेने से ही मना कर दिया था। जब तक जिए अपनी शर्तों पर जिए और आदर्श जीवन शैली से कभी परे होकर नहीं जिए।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

160244

+

Visitors