चंडीगढ़:– 31 जनवरी:– अनिल शारदा+करण शर्मा:— चंडीगढ़ पुलिस और चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस कर्तव्य निर्वहन और मुस्तैदी के लिए देशभर में अग्रणी पंक्ति में शुमार है। चंडीगढ़ पुलिस चप्पे-चप्पे पर मुस्तैद होकर अपनी ड्यूटी निभाते हुए दिखाई देती है आला अधिकारी से लेकर आम कांस्टेबल तक पब्लिक की सेवा में अथक रूप से कार्यरत है और यही इसकी कर्तव्यनिष्ठा कर्म परायणता इसके साथ में चार चांद लगाती है लेकिन वह पलिस भी और उसकी मुस्तैदी भी छोटी पड़ जाती है जब बड़े घरों के बिगड़ैल कायदे कानूनों को पैरों तले रौंदे हुए और लोगों को भी कानून को धता बताने के लिए उठाते हुए सड़कों पर अंधाधुंध ओवर स्पीड गाड़ियां भगाते हुए दहशत का माहौल बनाते हुए गुजरते हैं। मुस्तैद पुलिस तब बेचारी पुलिस होकर रह जाती है। और पब्लिक पुलिस का सहयोग समर्थन करने के बजाय मूकदर्शक बनी नजर आती है। कायदे कानूनों को लोगों की हिफाजत के लिए बनाया जाता है। लोगों की हिफाजत में हक कायदे कानून कितने कारगर साबित होते हैं यह भी सब भलीभाति जानते हैं।
चंडीगढ़ में ट्रैफिक रुलज काफी हद तक सख्त कर दिए गए हैं। ताकि पब्लिक की हिम्मत इन्हें तोड़ने की तो दूर इनको भेदने की सोचने की भी ना रहे। लेकिन आम पब्लिक की तो सारी जिंदगी डरते हुए निकल जाती है। कायदे कानूनों की धज्जियां उड़ाने वाले पल भर में मुस्तैद पुलिस का मुंह चिढ़ाते हुए पुलिस वर्दी को भी ठेंगा दिखा जाते हैं।
शहर भर में आजकल वाहनों के आगे पीछे किसी भी तरह का स्टिकर लगाना वर्जित है। और यह कानून पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के तत्कालीन जज द्वारा आदेश जनहित में जारी करवाया गया था। वाहनों पर दोनों आगे पीछे स्टिकर्स और कुछ लिखना बिल्कुल निषेध है। इस आदेश की अवहेलना करने वाले को सख्त सजा और अर्थदंड की बात भी कही गई है। लेकिन बड़े घरों के बड़े बिगड़ैल आज भी अपनी गाड़ियों पर काले शीशे किए हुए सड़कों पर दहशत की दास्तां लिखते नजर आते हैं।
ऐसी ही एक फॉर्च्यूनर सफेद रंग की गाड़ी अरोमा लाइट प्वाइंट पर सब लोगों का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही। जब उसके शीशे पर काली स्क्रीन की लोगों ने वीडियो बनानी शुरू कर दी। यह गाड़ी 21 सेक्टर से आते हुए दाएं मुड़ कर सेक्टर 17 की ओर चली गई। फॉर्च्यूनर गाड़ी का चंडीगढ़ रजिस्ट्रेशन नंबर सीएच 03 वी 0005 (CH03 V 0005) था। हैरत की बात है कि अरोमा लाइट प्वाइंट पर चौबीसों घंटे ट्राफिक पुलिस मुस्तैद रहती है। और इस पुलिस के पास चालान बुक भी रहती है। और चालान काटने की चंडीगढ़ पुलिस द्वारा पूर्ण रूप से अथॉरिटी भी रहती है। मजेदार बात यह है शिक्षित शहर भर में करोड़ों रुपए खर्च करके चौक चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। जिनके आउटपुट क्या हैं, यह जगजाहिर है। और शहर भर में नंबरी चालान का चलन भी पुराना है। हाल ही में पुलिस ने चालानों की वसूली के लिए घर घर जाकर चालान राशि एकत्रित करने का भी अभियान शुरू किया था। लेकिन अभियान किस ठंडे बस्ते में ठूंस दिया गया है। कोई भी कुछ कहने को तैयार ही नहीं है।
मौके पर एक बड़े स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि हो सकता है कि फॉर्च्यूनर मालिक ने काली फिल्म लगाने की परमिशन भी ले रखी हो। लेकिन ट्रैफिक पुलिस को उसे रोककर उसकी जांच करना अनिवार्य है। यह ट्रैफिक पुलिस का नैतिक और कानूनी अधिकार है। अधिकारों की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए। और कार चालक को भी शीशों पर काली फिल्म लगाने की परमिशन का सर्टिफिकेट चस्पा करना चाहिए।।
शहर की पढ़ी-लिखी पब्लिक अब पुलिस के आला अधिकारियों की ओर ताक रही है कि वह इस घटना का संज्ञान कैसे क्या लेती है। और जनता के आगे किस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करती है। और यह भी सब को स्पष्ट करती है कि कानून सबके लिए एक जैसा है।।