गायत्री मंत्र से ईशवर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना भावार्थ सहित संग्रहणीय

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🚩 चंडीगढ़: 13 जनवरी:- आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा+अनिल शारदा प्रस्तुति:—–

 

🌷ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।। यजु. २६|३।।

शब्दार्थ –

ओ३म्…..= सर्वरक्षक अर्थात् हे सबकी, सब जगह सब प्रकार से रक्षा करने वाले प्रभु !

भू……….= प्राणप्रिय अर्थात् बहुत प्रेम करने योग्य प्रभु !

भुवः…….= दुखहर्ता = सबके, सब जगह, सब प्रकार के दुःखों को दूर करने वाले प्रभु !

स्वः……..= सुखदाता हे सबको, सब जगह, सब प्रकार के सुखों को देने वाले प्रभु !

स‌वितुः…..= हे समस्त जगत् के उत्पत्तिकर्त्ता और उत्तम गुण, कर्म, स्वभावरूपी ऐश्वर्य देने वाले प्रभु !

व‌रेण्यम्……= हे सर्वश्रेष्‍ठ और अपने उपासकों को सर्वश्रेष्ठ‌ बनाने वाले प्रभु !

भर्गः…….= हे शुद्धस्वरूप और क्लेश उत्पन्न करने वाले दोषों को समाप्त करके अपने उपासकों को भी शुद्ध करने वाले प्रभु !

देवस्य…..= हे शुद्ध ज्ञानरूपी प्रकाश और आनन्द को देने वाले प्रभु !

तत्……..= ऐसे आपके स्वरूप को,

धीमहि….= हम धारण करें अर्थात् मन, बुद्धि और इन्द्रियों से एक भी व्यर्थ, दोषपूर्ण अव्यवस्थित‌ कार्य न करके आवश्यक, गुणवर्धक, व्यवस्थित कार्य ही आपकी आज्ञानुसार करें |

यः………= जिससे यह धारण किया हुआ आपका स्वरूप

नः………= हम सबकी

विधयः…..= बुद्धियों को

प्रचोदयात्..= व्यर्थ, दोषपूर्ण, अव्यवस्थित कार्य करने के संस्कारों से अलग करके आवश्यक गुणवर्धक व्यवस्थित कार्यों को करने में प्रेरित करें |

(स्तुति, प्रार्थना, उपासना सहित विस्तृत भावार्थ)
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स्तुति –

हे सर्वरक्षक, सबकी, सब जगह सब प्रकार से रक्षा करने वाले प्रभु ! आप मेरी आत्मा में विद्यमान् हैं, ऐसा मैं अनुभव करके प्रत्यक्ष देख रहा हूँ, जान रहा हूँ ।

प्रार्थना –

हे सर्वरक्षक प्रभु । आप मेरी सब जगह, सब प्रकार से रक्षा कीजिए अर्थात् मैं उल्टे संस्कारों (आदतों) के वशीभूत होकर न चाहता हुआ भी मन-बुद्धि-इन्द्रियों से उल्टे कार्य कर लेता हूँ अर्थात् मन से जो नहीं सोचना चाहता हूँ वह सोच लेता हूँ । बुद्धि से अच्छे निर्णय लेना चाहता हूँ किन्तु वे नहीं ले पाता । वाणी से दुःखदायी बातें नहीं बोलना चाहता हूँ किन्तु वे बातें बोल देता हूँ । आँखों से बुरे दृष्यों को नहीं देखना चाहता हूँ किन्तु देख लेता हूँ कानों से किसी की बुराईयाँ नहीं सुनना चाहता हूँ किन्तु सुन लेता हूँ जिह्वा से स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले पदार्थों को नहीं खाना-पीना चाहता हूँ किन्तु उस खान-पान को कर बैठता हूँ । और हे प्रभु ! उत्तम संस्कारों की न्यून्तावश (उत्तम आदतों के अभाव में) चाहता हुआ भी मन-बुद्धि-इन्द्रियों से अच्छे से अच्छे कार्य नहीं कर पाता हूँ जैसे मन से अच्छा ही सोचना चाहता हूँ किन्तु नहीं सोच पाता हूँ वाणी से सुखदायी ही बोलना चाहता हूँ किन्तु नहीं बोल पाता हूँ आँखों से सबको अच्छी दृष्‍टि से ही देखना चाहता हूँ किन्तु नहीं देख पाता हूँ । कानों से सदा अच्छी बातें ही सुनना चाहता हूँ वे नहीं सुन पाता हूँ । जिह्वा से निरोगता बढ़ाने वाले खान-पान करना चाहता हूँ किन्तु नहीं कर पाता हूँ । इसलिए प्रभु ! मुझ आत्मा के अन्दर से उल्टे संस्कारों को समाप्त करके अच्छे संस्कारों को भर दीजिए जिससे मैं समस्त बुराइयों, समस्याओं और दुःखों से बच जाऊँ और उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव से अलंकृत होकर सुरक्षित हो जाऊँ ।

उपासना –

हे सर्वरक्षक प्रभु ! आपकी सब जगह सब प्रकार की सुरक्षा को प्राप्त करने के लिए आपके आनन्द में मग्न होता हुआ यह दृड़ संकल्प लेता हूँ कि अब पूर्ण पुरुषार्थ करूंगा अर्थात् जो हुआ सो हुआ अब जानबूझकर मन-बुद्धि-इन्द्रियों से एक भी उल्टे कार्य नहीं करूंगा | यदि आलस्य प्रमादव‌श मन-बुद्धि-इन्द्रियों से जाने वा अनजाने दोष कर भी दिया तो उसका दण्ड अवश्य लूंगा अर्थात् अपने दोषों को हे प्रभु आपके सामने तथा अपने पूर्ण हितैषि व्यक्ति के सामने मन-बुद्धि और इन्द्रियों से हुए दोषों को जैसे के तैसे बताउँगा और दैनिक दिनचर्या की सञ्चिका (कापी) में अवश्य लिखूंगा ।

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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩

🌷 ओ३म् सम्राजो ये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वृता दधिरे दिविक्षयम् ।ताँ आ विवास नमसा सुवृक्त्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये ।। ऋग्वेद १०|६३|५।।

💐 अर्थ :- हे प्रभु! अपने तेज से भली प्रकार तेजस्वी, ज्ञानादि से वृद्ध जो विद्वज्जन यज्ञ कर्म को प्राप्त होते हैं और जो सबसे अपीड़ित देव गण उच्च सम्मानित पद को प्राप्त करते हैं, उन गुणों को आदर सहित अन्न पानादि से, सुन्दर मधुर वाणी से सम्मानित कर, ज्ञान प्राप्त करें तथा कल्याण को प्राप्त करें ।

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🕉🚩 आज का संकल्प पाठ 🕉🚩
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(सृष्टि संवत् – संवत्सर-अयन – ऋतु- मास-तिथि- नक्षत्र)🔥💥🌟☀️
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ओं तत्सद्।श्री व्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे सप्तमे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे ,{ एकोवृन्दः षण्णवतिकोटि: अष्टलक्षानि त्रिपञ्चाशत्सहस्राणि द्वाविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२२) सृष्टिसंवत्सरे } { पच्चसहस्स्राणि द्वाविंशत्युत्तरशततमे ( ५१२२ ) कलियुगे } { अष्टसप्तत्युत्तर द्विसहस्रतमे ( २०७८) विक्रमसंवत्सरे } {सप्तनवत्यधिकशततमे (१९७) दयानंद संवत्सरे } रवि उत्तरायणे, शिशिर ॠतौ, पौष मासे, शुक्ल पक्षे, दशम्यां तिथौ, भरणी नक्षत्रे, बुधवासरे, तदनुसार १२ जनवरी २०२२
जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तरगते ………प्रदेशे ,……..जनपदे.. ..नगरे……गोत्रोत्पन्नः….श्रीमान. (पितामह)….(पिता)…पुत्रस्य… अहम् .'(स्वयं का नाम)….अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ ,आत्मकल्याणार्थ ,रोग -शोक निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।

🕉️🚩 ओ३म् सुदिनम् = 🕉️🚩 ओ३म् सुप्रभातम् = 🕉️🚩 ओ३म् सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:

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