सियासत की बिछी बिसात देखें कौन चलता किसके साथ कौन मिलेगा हाथ

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चंडीगढ़:-27  दिसंबर:-आरके विक्रमा शर्मा/ राजेश पठानिया:–चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव मतदान 24 दिसंबर को संपन्न हुआ था। और आज सोमवार 27 दिसंबर को नगर निगम के 35 वार्डों के नतीजे सबके सामने आ चुके हैं ।आम आदमी पार्टी को शहर में 14 सीटों के साथ अच्छी एंट्री मिली है। भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह फिसली है। और कांग्रेस ने एक बार फिर वैसाखियों के सहारे खुद को खड़ा किया है। अकाली दल बादल सीट पर वर्चस्व कायम रखते हुए प्रत्याशी ने भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आई को शिकस्त दी है।

महिला के आरक्षित वार्डों में मतदान शांतिपूर्वक और सुखद सुरक्षित वातावरण में संपन्न हुए हैं। इसका अधिकतर श्रेय स्थानीय जनता के संयम शिष्टता अनुशासन और पुलिस की मुस्तैदी और दूरदर्शिता को जाता है। प्रशासन शाबाशी का सुपात्र है। कि उसने तमाम व्यवस्था को बहुत ही बारीकी से व्यवस्थित किया था।

अल्फा न्यूज़ इंडिया ने पहले ही स्पष्ट बताया था। पूर्ण रूप से बहुमत किसी भी बड़ी पार्टी को नहीं मिलेगा। और त्रिशंकु असार अक्षरत पूरे हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी को कई कारणों के चलते हार का बुरा मुंह देखना पड़ा है। कांग्रेस आई  अपनी कुछ देश के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोणों के चलते पिछड़ गई है। नहीं तो दूसरी बड़ी पार्टी चंडीगढ़ में साबित होती। नगर निगम चुनावों में अच्छी जीत हासिल करती। शिरोमणि अकाली दल बादल की एकमात्र सीट लंबे अरसे से जीत के पायदान पर खड़ी होती रही है और इस मर्तबा भी उसने अपना वर्चस्व बनाए रखा है इसका श्रेय स्थानीय पार्षद द्वारा वार्ड में करवाए गए कार्यों को जाता है अरे बहुत बड़ी बात है की है सीट शुरू से अभी तक अकाली दल के कब्जे में रही है।

भारतीय जनता पार्टी अपना  महापौर चुनने के करीब इतनी ही है जितनी आम आदमी पार्टी हैl आम आदमी पार्टी के 14 मोहरें हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी को सांसद की टिकट समेत कुल 14 मोहरें हो जाएंगे। इसमें एक मोहरा अकाली दल बादल का भी रहेगा। जो पंजाब में और चंडीगढ़ में गठबंधन की मिसाल रहे हैं।

कयासों की कहानी का चाशनी तैयार करें। तो आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस आई और अकाली दल बादल एक होकर इस मनोरथ में कामयाब हो सकते हैं। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए आम आदमी पार्टी कांग्रेस आई को सीने लगा सकती है। और अपना महापौर चुन सकती है।

उपरोक्त कयासों में कोई हैरानी की बात नहीं है। गिरगिट कब कहां कैसे कौन सा रंग बदलेगा। यह बताया जा सकता है कि क्रिकेट में आखरी बॉल पर क्या से क्या हो सकता है। यह भी बताया जा सकता है शासन और मौजूदा प्रशासनिक ढांचा रिश्वतखोरी भ्रष्टाचारी में कहां तक गिर सकता है। यह भी बताया जा सकता है। लेकिन सियासत में एक दूसरे को सत्ता सुख से वंचित करने के लिए कब कौन कैसा छदम खेल खेल जाए। कोई कभी कहीं कुछ नहीं कह सकता है।

राजनीति अवसरवादिता और तिजोरी भरने का एक अच्छा जरिया बन चुका है। कभी राजनीति सेवा के लिए की जाती थी। आज सेवा करवाने के लिए की जा रही है। शर्म इस बात की है कि जो मतदाता नेताओं पर विश्वास करके, इनका चुनाव करते हैं। यह उन्हीं मतदाताओं के ख्वाबों को पद दलित करते हैं। और इन के विश्वास व स्वाभिमान को ठेस पहुंचाते हैं।

जीतने वालों को उन पर भरोसा करने वाले वोटरों की इच्छाओं, दावों और वादों पर खरा उतरना होगा। फिसलने वाले और हारने वाले प्रत्याशियों के एक बार पुनः सोचना होगा कि आखिर भूल कहां हुई है। दूसरी बात यह कि वोटरों को अब किसी भी सूरते हाल में मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। लोग अब काम चाहते हैं। तो काम बोलना चाहिए, ना कि भीड़ और नारे इस काम आएंगे।

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