डिजिटल इंडिया का जमाना कितना कारगर…? जिम्मेदार अधिकारी बने तमाशबीन

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चंडीगढ़ :18 अक्टूबर:-हरकेश ऐरी + अनिल शारदा+करण शर्मा:–ट्राइसिटी में तीसरी लहर का कहर कितना भयानक और जानलेवा है। यह अब एक रहस्य बन चुका है। क्योंकि सोशल मीडिया और रेडियो टेलीविजन हार्ड कॉपी यानी समाचार पत्रों में अब इसकी भनक नहीं लग पा रही है। सावधानी बरतने के नाम पर मास्क ना पहनने वालों के चालान काटे जा रहे हैं। लेकिन दफ्तरों में सैनिटाइजर अब दूर दूर तक दिखाई नहीं देते हैं। और जो हैं, वह आंखों में धूल झोंकने के सिवा किसी काम के नहीं हैं। कॉलेज के स्टूडेंट्स को वैक्सीनेशन कोर्स पूरे हो चुके हैं। लेकिन उन्हें कॉलेज नहीं भेजा जाता रहा और छोटे बच्चों को जिनको वैक्सीनेशन हुआ ही नहीं, उनको स्कूल जाने के लिए बार-बार फरमान जारी किए जाते रहे। सरकारी दफ्तरों में बाबू की आमद लगातार बराबर बनी हुई है। लेकिन प्रिकॉशंस के नाम पर वहां आंखों में धूल  झोंकी जा रही है। और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं। शहर में इक्का-दुक्का लोग चालान काटने की प्रक्रिया अपनी जान हथेली पर रखकर कर रहे हैं। इन सरकारी ऑफिसर के ऊपर जनता किस तरह भड़कती है। यह बेचारे वही भुगत रहे हैं। इनके लिए किसी प्रकार की भी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई है। सरकारी नौकरी के बाद लोग इनसे रंजिश निकालने के लिए भी इनके साथ खार खाते देखे जा रहे हैं। ऐसे में मास्क ना पहने वालों के चालान काटने के फरमान जारी रखना, बेईमानी से प्रतीत होते हैं। और जिन ऑफिशियल को इलाका मजिस्ट्रेट की जिम्मेवारी दी गई हैं वहीं के साथ यदा-कदा भी नहीं देखे जाते हैं आखिर यह ऑफिशल्स कब तक अपनी जान जोखिम में डालकर प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों की कठपुतली बने रहेंगे।। दो-चार लोगों के चालान काटने के साथ  पूरे शहर की स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था संतुलित रहेगी? यह व्यवस्था के नाम पर एक तमाचा नहीं तो और क्या है!  क्या अधिकारी इस हंसी के पात्र जैसे मास्क ना पहनने वालों के चालान काटने के अभियान को तुरंत प्रभाव से रोकेंगे।या यूं ही जारी रखते हुए सरकारी ऑफिशल्स के ऊपर किसी भी प्रकार की अनहोनी को होने देने का न्योता देते रहेंगे।

तीसरी लहर की आहाट को लेकर चंडीगढ़ प्रशासन सतर्क हो रहा है। लेकिन बिना मास्क वालों के चालान काटने के लिए अभियान फिर तेज करने के लिए प्रशासन मुस्तैद हो गया है। लेकिन इस कार्य में कार्यरत अलग-अलग कार्यलाओं के कर्मचारी कार्यरत हैं। लेकिन ये कर्मचारी क‌ई बिना मास्क वालों के बुरे व्यवहार से ग्रस्त हो जातें हैं। इस डिजिटल इंडिया के जमाने में बिना मास्क के चालान काटने वाले कर्मचारियों के पास पैसे लेने वाली डिजिटल मशीन तक नहीं है। जिस कारण कई बार इसका खामियाजा इन कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है। क्योंकि हर किसी के पास नगद राशि नहीं होती हैै। जिस कारण ये लोग बुरी तरह से कर्मचारियों से लड़ते हैं। उनका सबसे ज्यादा ये कहना होता कि शहर के क‌ई चौक चौराहों पर बिना मास्क के किसानों के चालान पुलिस तक क्यों नहीं काटती हैं । हिंद संग्राम परिषद ट्राइसिटी ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि यह चालान कार्य पुलिस विभाग के पास होना चाहिए। बिना वर्दी कर्मचारी को तो इन लोगों की गाली गलौज व हिंसा तक का शिकार होना पड़ता है। नहीं तो इन चालान काटने वाली टीमों के साथ हथियारबंद पुलिस कर्मचारी दिए जाएं। क्योंकि अब ज्यादातर लोग बिना मास्क के ही नजर आते हैं। और जिन लोगों का चालान कटता है। वह काफी गुस्से में होते हैं। अभी तक प्रशासन के दिशा निर्देशों की जानकारी लोगों को नहीं है। इसलिए सबसे पहले लोगों में जागरूकता पैदा की जाए। प्रशासन को चालान काटने वालों को डबल वैक्सीन हुए लोगों के चालान होने चाहिए या नही?, डिजिटल इंडिया मशीनें मुहैया कराई जाएं। ताकि डिजिटल इंडिया के जमाने में ऐसा भेदभाव क्यों? बिना मास्क के घूमने वाले लोगों को जब चालान काटने वाले अधिकारी रुकते हैं चालान के जुर्माने ₹1000 अदा करने को कहते हैं तो भुक्तभोगी इन पर ही पिल पड़ता है। और अन्य बिना मास्क के जाने वाले वाहन चालकों, सवारियों और पैदल राहगीरों की ओर इशारा करके सब के चालान काटने की बात कहता है। जबकि अकेला चालान काटने वाला अधिकारी एक समय में सैकड़ों लोगों के कैसे चालान काट सकता है। सवाल यह है कि मास्क ना पहनने वाले का चालान काटकर अन्यों का चालान ना काटना कहां से कानून की रक्षा है। सरकारी आदेशों की पालना करना है। कानून का यह भेदभाव इन ऑफिशल्स पर भारी पड़ रहा है। और यह जिम्मेदार और जवाबदेही प्रशासनिक अधिकारियों की सूझबूझ और दूरदर्शिता पर भी सवालिया चिन्ह खड़ा करता है।

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