चंडीगढ़:- 8 अक्टूबर:- आर के विक्रम शर्मा+ करण शर्मा अनिल शारदा प्रस्तुति:—-*चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से माॅ दुर्गा भवानी के परम पावन वासंतीय नवरात्रो का आंरभ होता है!! इसका आंरभ नौ नवरात्रो से होता है। इन नौ नवरात्रो की क्रमशः नौ देवियाॅ होती हैं। जो कि क्रम से इस प्रकार है ।
पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तृतीय चंद्रघण्टा,चौथी कूष्माडा, पांचवीं स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवी कालरात्रि, आठवी महागौरी तथा नवी माता का नाम सिद्धिदात्री है*
नवरात्रो के दूसरे दिन माता ब्रह्रमचारिणी देवी का दिन है।
*द्वितिय माॅ:- ब्रह्मचारिणीदेवी*
आदि भवानी मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी देवी का है, इनका यह नाम ब्रह्रांड को जन्म देने के कारण ही हुआ है । यहाॅ ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या है, कठोर तपस्या और धैर्य की तो इनमे पराकाष्टा है । ब्रह्म जी की शक्ति इन्ही मे निहित है, और शक्ति की शक्ति भी ब्रह्मा जी है । ब्रह्म का अर्थ है तपस्या, और चारिणी यानी आचरण करने वाली, अर्थात तप का आचरण करने वाली ।
सृृृष्टि की उत्पति के लिए ब्रह्माजी ने मानस पुत्रो को जीवन दिया, पंरतु मानसपुत्र कालातीत होते रहे, किसी से भी सृृष्टि का विस्तार नही हो सका, ब्रह्माजी को बडा आश्चर्य हुआ, उन्होने सदाशिव से पूछा कि ऐसा क्यो हो रहा है, सदाशिव ने क्हा देवी शक्ति के बिना सृृष्टि का विस्तार नही हो सकता, तब देवता माॅ की शरण मे गये तो माॅ ने सृृष्टि का विस्तार किया, उसी के बाद से ही नारी शक्ति को माॅ का दर्जा मिला और गर्भधारण करके शिशु जन्म की नींव पडी । (शिशु मे भी माता की नौ शक्तियाॅ होती है ।)
सोलह संस्कार और माता-पिता के 42 गुण, इनमे से भी माता के 36 गुण होते है , और बाकी के केवल 6 गुण पिता के होते है ।
शैलपुत्री के रुप मे देवी प्रकृृति, ब्रह्मचारिणी देवी स्वरुपा है तो ब्रह्मचारिणीदेवी के रुप मे सृृष्टि की निर्मात्री भी है । देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे
तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा ।
*माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप:-*
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है । मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी है । देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन रहती हैं । मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है, जो तीनों लोको को आलोकित करता रहता है । देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है, और बायें हाथ में कमण्डल होता है ।
*मां ब्रह्मचारिणी को भोग:-*
मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत का भोग लगाया जाता है । पंचामृत की सामग्री का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है । (पंचामृत – दूध, दही, धी, शहद, शक्कर)
इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है । इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है ।
*इनके मंत्र, स्तोत्र तथा कवच इस प्रकार से है:-*
*1.या देवी सर्वभूतेषू सृृष्टि रुपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यैैै नमस्तस्यै नमो नम:।*
*2.करपद्माभ्या मक्षमाला कमण्डलू देवि।*
*प्रसीदतु मयि ब्रह्रमचारिण्यनुत्तमा ।।*
*ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ*
*तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।*
*ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥*
*शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।*
*शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥*
*ब्रह्मचारिणी की कवच*
*त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।*
*अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥*
*पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥*
*षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।*
*अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।*
*कल “माँ चंद्रघंटा तथा कूष्माण्डा देवी”।*
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