चंडीगढ़: 07 अक्टूबर आरके विक्रमा शर्मा करण शर्मा प्रस्तुति:—शारदीय नवरात्रों का प्रारंभ आज 7 अक्टूबर से हुआ है और इस मर्तबा तीसरा और चौथा नवरात्रा एक ही दिवस को है अतः कुल 9 की जगह 8 दिवस नवरात्रों के रहेंगे नव दुर्गे नवरात्रि माता के नौ स्वरूपों के व्रत और दिव्या दर्शनों की महिमा का गुणगान अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से जाने-माने ज्योतिषी और पंडित कृष्ण मेहता लाखों सुधि पाठकों के लिए आस्था वालों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। नवरात्रि नव दुर्गा मैया के आज पहले स्वरूप का नवरात्रा है आज शैलपुत्री माँ दुर्गा अपने पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती है | पर्वतराज हिमालय के वहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका यह ‘शैलपुत्री’ नाम पड़ा था | वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है | यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं |
अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं | तब इनका नाम ‘सती’ था | इनका विवाह भगवान् शंकरजी से हुआ था | एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया | इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिये निमन्त्रित किया | किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमन्त्रित नहीं किया | सती ने जब सुना कि हमारे पिजा एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिये उनका मन विकल हो उठा | अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बतायी | सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा – “प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं | अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमन्त्रित किया है | उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है | कोई सूचना तक नहीं भेजी है | ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा |” शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ | पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने कि उनकी व्याग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी | उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान् शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी |
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात-चीत नहीं कर रहा है | सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं | केवल उनकी माता ने स्नेह से गले लगाया | बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे | परिजनों के इस व्यवहार से उनके मनको बहुत क्लेश पहुँचा | उन्होंने यह बी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान् शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है | दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे | यह सब देखकर सती का ह्रदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा | उन्होंने सोचा भगवान् शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है |
वह अपने पति भगवान् शंकर के इस अपमान को सह न सकीं | उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीँ योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया | वज्रपात के समान इस दारुण-दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुध्द हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया |
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्मकर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया | इस बार वह “शैलपुत्री” नाम से विख्यात हुई | पार्वती, हैमवती भी उन्ही के नाम हैं | उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था |
‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ | पूर्वजन्म कि भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी कि अर्धांगिनी बनीं | नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनन्त हैं | नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं कि पूजा और उपासना की जाती है | इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं | यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारम्भ होता है |Ii *।। जय माता दी ।।*