पितृ दोष का निवारण सरल सहज और सुलभ है:– पंडित कृष्ण मेहता

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चंडीगढ़:21 सितंबर अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क:—पितृदोष व्यक्ति का जीवन पूरी तरह तबाह कर सकता है। ऐसे व्यक्ति के हर काम में बाधा आती है। पारिवारिक जीवन में खुशी की कमी होती है और आए दिन किसी ना किसी प्रकार की परेशानी उन्हें घेरे ही रहती है। 15 दिनों के श्राद्ध पक्ष में सभी अतृप्त पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए दान, तर्पण करने का विधान है, इसके अलावा यह अमावस्या तिथि पर भी की जाती है।

*घर पर तर्पण करने की विधि -*

पितृ श्राद्ध आप घर पर भी कर सकते हैं। हाथ जोड़कर सबसे पहले अपने मन में भगवान गणेश का ध्यान करें और आपकी जलांजलि को निर्विघ्न पूर्ण कर उसे पितरों द्वारा स्वीकारे जाने की प्रार्थना करें। अब गहरे तले वाले दो बर्तन लें, यह स्टील या पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है।

एक बर्तन में सबसे पहले शुद्ध जल लेकर इसमें थोड़ी मात्रा में गंगाजल मिलाएं। अब इसमें दूध, जौ, काले तिल, चंदन, काले तिल, चावल और चंदन डालकर अच्छी तरह मिला लें।

दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं। अब एक कुशा लेकर उसे दोहरा करें और तिरछा रखते हुए दाहिने हाथ में अंगूठे से पकड़ें (पितृतीर्थ मुद्रा)। अब अपने गोत्र का नाम लेते हुए पितरों का आह्वाह्न करते हुए कहें कि “हे पितर! कृपा कर मेरी ये जलंजलि स्वीकार करें!”

जैसे अगर अपने पिता के लिए तर्पण कर रहे हों, तो पिता काम लेते हुए कहें – “ मैं अपने पिता।। (नाम) की तृप्ति के लिए यह तिल सहित जल अर्पण करता हूं/ करती हूं। तस्मै स्वधा नम:!” और दूसरे पात्र में जल छोड़ें।

इसी विधि का पालन करते हुए माता, दादा, दादी आदि के लिए भी करें। मंत्र में हर पुरुष पितर के लिए “तस्मै स्वधा नम:!” और हर महिला पितर के लिए “तस्यै स्वधा नम:!” कहें। जैसे पिता के लिए “तस्मै”, तो मात के लिए “तस्यै”।

इसका भी ध्यान रखें कि माह की जिस भी तिथि को पितरों की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को उनका श्राद्ध या तर्पण करें। अगर तिथि का ज्ञान ना ह हो, तो श्राद्ध के आखिरी दिन (अमावस्या) उनके नाम पर दान या तर्पण करें। सभी ज्ञात पितरों के लिए जलांजलि (तर्पण) अर्पित करने के पश्चात् अपने अन्य सभी अज्ञात पितरों के लिए इस प्रकार तर्पण करें: “जो नरक आदि में यातना भुगत रहे हैं और हमसे जल पाना चाहते हैं, उन सभी की तृप्ति के लिए मैं जलांजलि अर्पण करता/करती हूं। जो मेरे बंधु-बांधव हैं और जो मेरे बंधु-बंधव नहीं हैं, जो पिछले किसी जन्म के बंधु-बांधव हैं, उनकी तृप्ति के लिए भी मैं ये जलांजलि अर्पण करता/ करती हूं

देव, ऋषि, पितृ, मानव सहित ब्रह्म पर्यंत सभी की तृप्ति के लिए मैं ये जलांजलि अर्पण करता/करती हूं। माता और नाना के कुल के और करोडों कुलों के सातों द्वीपों और समस्त लोकों में रहने वाले प्राणियों की तृप्ति के लिए भी मैं ये जलांजलि अर्पण करता/करती हूं। जो मेरे बंधु-बांधव हैं या जो मेरे बंधु-बंधव नहीं हैं जो पिछले किसी जन्म के बंधु-बांधव हैं, वे सभी मेरे द्वारा अर्पण किए इस तर्पण से पूरी तरह तृप्त हों।

” इस तर्पण के पश्चात् संभव तो सबसे पहले ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं, फिर किसी गाय को रोटी खिलाएं, इसके बाद ही परिवार के सभी सदस्य भोजन करें। यम स्त्रोत्र और पितृ स्त्रोत्र का पाठ कर सकें तो और भी अच्छा है।

इसके बाद घर के पूजन स्थल पर जाएं। एक बर्तन में काले तिल और एक खाली कटोरी या कोई भी बर्तन लें। दाएं हाथ से तिल उठाकर दूसरे प्लेट या कटोरी में डालते हुए हाथ जोड़कर कहें “ हे पितृ देवताओं! ये जलांजलि और भोजन सामग्री ग्रहण करें और हमें आशीर्वाद प्रदान करें।

इस प्रकार आपका तर्पण पूर्ण हो जाता है। इससे जहां सभी अतृप्त या मोक्ष के लिए भटक रहे पितरों को मुक्ति और शांति मिलती है, वहीं आपको उनका आशीर्वाद भी मिलता है।।

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