अश्विन मास की अमावस को होगा श्राद्धों का समापन

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चंडीगढ़:20 सितंबर:-अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क प्रस्तुति:–: अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ और अमावस्या पर समापन होगा। इन दिनों में पितरों के तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व होता है। 2021 में श्राद्ध 20 सितंबर से 6 अक्तूबर तक रहेंगे परंतु 26 सितंबर को पितृपक्ष की तिथि नहीं है। माना जाता है कि श्राद्ध के 16 दिनों में पितर धरती पर आते हैं, यमराज सभी आत्माओं को मुक्त कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्रद्धा से दिए गए श्राद्ध को ग्रहण कर सकें। ब्रह्म पुराण में कहा गया है, जैसी भी वस्तु उत्तम समय या जगह पर पितरों के नाम पर विधि-विधान द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक भेंट की जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के द्वारा परिजन पितरों की तृप्ति के लिए भोजन अर्पित करते हैं। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया, भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

श्राद्ध सारिणी
20 सितंबर, सोमवार: पूर्णिमा श्राद्ध

21 सितंबर, मंगलवार: प्रतिपदा श्राद्ध

22 सितंबर, बुधवार: द्वितीया श्राद्ध

23 सितंबर, बृहस्पतिवार: तृतीया श्राद्ध

24 सितंबर, शुक्रवार: चतुर्थी श्राद्ध

25 सितंबर, शनिवार: पंचमी श्राद्ध

27 सितंबर, सोमवार: षष्ठी श्राद्ध

28 सितंबर, मंगलवार: सप्तमी श्राद्ध

29 सितंबर, बुधवार: अष्टमी श्राद्ध

30 सितंबर, बृहस्पतिवार: नवमी श्राद्ध

01 अक्तूबर, शुक्रवार: दशमी श्राद्ध

02 अक्तूबर1, शनिवार: एकादशी श्राद्ध

03 अक्तूबर, रविवार: द्वादशी, सन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध

04 अक्तूबर, सोमवार: त्रयोदशी श्राद्ध

05 अक्तूबर, मंगलवार: चतुर्दशी श्राद्ध

06 अक्तूबर, बुधवार: अमावस्या श्राद्ध

शुभ मुहूर्त- दिन के अपरान्ह 11:36 मिनिट से 12:24 मिनिट तक का समय श्राद्ध कर्म के विशेष शुभ होता है। इस समय को कुतप काल कहते हैं
दोपहर के समय करें श्राद्ध

मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म करने की मनाही होती है। क्योंकि शाम का समय राक्षसों का माना जाता है।

दूसरे की भूमि पर ना करें श्राद्ध

श्राद्धकर्म दूसरों की भूमि पर करने से बचना चाहिए। इसे फलदायी नहीं माना जाता है। इसलिए अपने पुर्वजों का श्राद्ध किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर पर करने की जगह पर अपनी भूमि पर ही करें। हां, आप यह कार्य किसी मंदिर, नदी के पास कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार इन पवित्र स्थानों को किसी दूसरों की भूमि नहीं माना जाता है।

गाय के घी, दूध का करें इस्तेमाल

श्राद्धकर्म की पूजा में गाय का घी, दूध, दही का इस्तेमाल करना शुभ माना जाता है।..

तुलसी व तिल का करें प्रयोग

तुलसी व तिल को पवित्र माना जाता है। साथ ही कहा जाता है कि इसे चढ़ाने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसे में आप भी श्राद्ध की पूजा व भोजन में इनका इस्तेमाल जरूर करें।

ब्राह्मण को भोजन करवाएं

ब्राह्मण को भोजन करवाएं बिना श्राद्ध संपूर्ण नहीं माना जाता है। कहा जाता है कि ब्राह्मण को भोजन खिलाएं बिना घर के पितर खाना नहीं खाते हैं। ऐसे में आप अपने पितरों की श्राद्ध तिथि के एक दिन पहले ही ब्राह्मण को खाने के लिये निमंत्रण दे आए। फिर अगले दिन खीर, पूरी, सब्जी आदि पितरों की मनपसंद चीजें बनाकर ब्राह्मण को भोजन करवाएं।

चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान करें

श्राद्धकर्म में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान करना बेहद शुभ व पुण्यदायी माना जाता है। ऐसे में अगर संभव हो पाए तो आप भी श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन चांदी के बर्तनों में करवाएं। साथ ही अपने सामर्थ्य अनुसार दान करें।

ह्मण या ब्राह्मण की पत्नी को निमंत्रण दे

अगर घर में स्वर्गवासी पूर्वज एक पुरुष हैं, तो पुरुष ब्राह्मण को भोजन के लिए बुलाएं। अगर महिला है तो आप ब्राह्मण की पत्नी को भोजन खिला सकते हैं। इसके अलावा एक पूर्वज कोई सौभाग्यवती महिला थी तो उसके श्राद्धकर्म के लिए सौभाग्यवती ब्राह्मण की पत्नी को ही भोजन के लिए बुलाए।

दोनों हाथों से खाना परोसें

ब्राह्मण को दोनों हाथों से भोजन परोसें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि श्राद्ध का खाना एक ब्राह्मण को ही दिया जाता है। वैसे आप अपनी इच्छा के अनुसार, किसी गरीब, जरूरतमंदर को भी भोजन खिला सकते हैं। मगर श्राद्ध में पितरों की तृप्ति केवल ब्राह्मणों को भोजन खिलाकर ही होती है।

ब्राह्मण को आसन पर बिठाएं

भोजन खिलाने से पहले ब्राह्मण को साफ आसन पर बिठाएं। इसके लिए आप कपड़े, ऊन, कुश या कंबल आदि का आसन बना सकते हैं। मगर इसमें लोहे इस्तेमाल करने से बचें।

दक्षिणा और कपड़े दें

श्राद्ध पूरा होने के बाद ब्राह्मण को अपनी इच्छा मुताबिक दक्षिणा, कपड़े आदि दें।

देवता व जीव-जंतुओं के लिए भी निकाले भोजन

श्राद्ध के दिन बनाए गए भोजन में से गाय, देवता, कौओं, कुत्तों और चींटियों के लिए भी भोजन निकाले। आप चींटियों और देवता का भोजन गाय को खिला सकते हैं। मगर कुत्ता, कौओं का भोजन उन्हें ही खिलाएं।

श्राद्धकर्म संपन्न होने के बाद खुद खाएं

ब्राह्मण, गाय आदि को भोजन कराने के बाद ही घर के बाकी सदस्यों व रिश्तेदारों को भोजन करना चाहिए।

बहन, जमाई और भांजे को भोजन करवाना शुभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बहन, जमाई और भांजे को श्राद्ध का भोजन खिलाना शुभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर के पितरों के साथ देवता भी भोजन ग्रहण करते हैं।

जरूरतमंद व भिखारी को खिलाएं भोजन

श्राद्ध के दिन घर पर कोई भिखारी या जरूरमंद आ जाए तो उसे बिना भोजन करवाएं ना जाने दें। इसके लिए उसे आदरपूर्वक घर में बिठाकर भोजन करवाएं। इससे पितरों व देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।

श्राद्ध के भोजन में इन चीजों को करें शामिल
श्राद्ध का भोजन बनाने में जौ, मटर, कांगनी और तिल का इस्तेमाल जरूर करें। इसके साथ ही इसमें तिल अधिक होना चाहिए। कहा जाता है कि तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। इसके साथ इसमें कुशा का भी खास महत्व है। इनसब के साथ श्राद्ध के दिनों में चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बांसी अन्न खाने की मनाही होती है।

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साभार :-हेमन्त किगरं (समाजसेवी)

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