चंडीगढ़:- 19 सितंबर:– आरके विक्रमा शर्मा करण शर्मा प्रस्तुति :– धरती पर हिंदू धर्म सनातनी परंपराएं सबसे प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता समेटे हुए हैं इस धरती पर भारत भूमंडल पर अनेकों अनेकों देवी-देवताओं ने हजारों हजारों वर्ष तब किए और सृष्टि रचयिता परमपिता परमेश्वर को साक्षात अपने सामने प्रकट होकर दर्शन देने कृतार्थ करने का सौभाग्य पाया भगवान शंकर ने सागर मंथन के बाद विष पीकर विष की ज्वाला ज्वलन शांत करने के लिए 10,000 वर्ष तप किया था। भारतीय सभ्यता संस्कृति एक अमूल्य धरोहर है। इसका पठन-पाठन करने से नाना प्रकार के बड़े पापाचारों से मुक्ति मिलती है।
भगवान् श्री कृष्ण जी द्वारा श्रीमद्भागवत गीता का अत्यंत दुर्लभ ज्ञान समस्त भौतिक प्राणियों के लिए अमूल्य वरदान है। भगवान श्री कृष्ण की क्रिया स्थली बाल लीला स्थली और अनेकों दुर्लभ असहाय लोगों की विभिन्न प्रकार से मदद की स्थली की चौरासी कोस की यात्रा का वर्णन ज्योतिषाचार्य और पंडित कृष्ण मेहता अपने संकलन करमंडल से अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से लाखों आस्थावानों, सुधी पाठकों हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं।
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। इस परिक्रमा के बारे में वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।