चंडीगढ़: 16 सितंबर: आर के विक्रमा शर्मा करण शर्मा प्रस्तुति:–भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी पदमा एकादशी कही जाती है। इस वर्ष 17 सितंबर यानी कल शुक्रवार को पदमा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन रुप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढोतरी होती है। इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र धोये थे। इस दिन कान्हा की पालना रस्म भी संपन्न हुई थी। अत: इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है।
मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु, श्री कृष्ण को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। उनको स्नान कराया जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है।
इस व्रत में धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजा करने की विधि-विधान है। सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं। सातों कुंभों में सात प्रकार के अलग-अलग धान्य भरे जाते हैं। इन सात अनाजों में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए।
कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर, द्वादशी तिथि तक जाता है। इसलिए इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लंबी होती है। एकादशी तिथि के दिन पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान में दिया जाता है।
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण महाराज जी उपदेश देते हैं कि कोई भी कार्य अच्छी चितवन से किया जाए। तो वह सफल सिद्ध होता है। और अगर वह धार्मिक कार्य है। तो श्रद्धा और पूर्ण विश्वास निष्ठा के साथ संपन्न किया जाए। तो फिर वह सोने पर सुहागा हो जाता है। इसलिए व्रत को पूरी तरह से प्रभु चरणों में समर्पित होते हुए करना चाहिए। प्रभु भक्ति का सारा दिन स्मरण और सिमरन करना चाहिए।।