कुरूक्षेत्र ; 28 नवम्बर ; अल्फ़ा न्यूज इंडिया /राकेश शर्मा ;–राजस्थान के लोक देवता वीर होजा महाराज के वंशजों द्वारा किया जाने वाला कच्ची घोड़ी नृत्य ब्रह्सरोवर के तट पर महिलाओं के सिर चढक़र बोल रहा है नृत्य करने वाले कलाकारों के पास से होकर गुजरने वाले हर व्यक्ति के पैर थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं जब वो चल रहे कच्ची घोड़ी नृत्य की धुनों को अपने कान के समीप पाता है।
वीर होजा महाराज की घोड़ी लीलन के नाम पर पड़ा यह कच्ची घोडी नृत्य राजस्थान की पुरानी परम्परा को संजोए हुए है। कच्ची घोड़ी नृत्य के टीम लीडर बनवारी लाल ने बताया कि राजस्थान के लोक देवता वीर होजा महाराज जिन्होंने अपना शरीर करीब 944 साल पहले त्यागा था, उनकी घोड़ी का नाम लीलन था जोकि नीले रंग की थी। यह घोड़ी वीर होजा महाराज की शक्ति का प्रतीक थी।
उन्होंने बताया कि उसी की अराधना में यह कच्ची घोड़ी नृत्य किया जाता है। आधुनिक समय में इसने मनोरंजन का रूप ले लिया है। इस नृत्य में पुरूष को ही महिला का वेश धारण कर भाग लेना पड़ता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अजमेर के जिस सुरसुरा गांव में गऊ की रक्षा करते-करते होजा महाराज ने अपना शरीर त्यागा था वहां पर जो मंदिर बना हुआ है उस मंदिर में औरत का प्रवेश नहीं होता। उसी परम्परा का निर्वाहन करने के लिए इस कच्ची घोड़ी नृत्य में पुरूष को ही स्त्री का वेश घारण करना पड़ता है। ऐसा मानना है कि कोई कीड़ा काटने पर यदि ये वंशज अपने कपड़े की कोई भी कतरन बांध देते हैं तो उस कीड़े के काटने का असर समाप्त हो जाता है।
बनवारी लाल ने बताया कि उनकी इस राजस्थानी परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए हरियाणा सरकार ने अनुठा प्रयास किया है। प्रत्येक जिले में मनाई जाने वाली गीता जंयती में कच्ची घोड़ी नृत्य के कलाकारों को मौका दिया जा रहा है। इससे कलाकारों का मनोबल बढ़ा है। इस नृत्य में ढ़ोलक, अलगोजा, झीझंर और अन्य वाद्यय यंत्रों को बजाकर लोक गीत गाए जाते हैं।