तालिबान का बढ़ता वर्चस्व अफगानिस्तान ईरान पाकिस्तान और हिंदुस्तान के लिए बड़ा खतरा

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  • चंडीगढ़ 14 अगस्त :- अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क प्रस्तुति:–तापी गैस पाइप लाइन रूट पर तालिबान का पूरा कंट्रोल हो चुका है. ईऱान की सीमा के साथ लगते तमाम राज्यों पर तालिबान नियंत्रित स्थापित कर चुका है। कंधार, हेलमंड, निमरोज समेत हेरात पर तालिबान का कब्जा हो गया है। पर कंधार के बाद हेरात पर तालिबान ने नियंत्रण स्थापित कर लिया है। हेरात के मजबूत सरदार इस्माइल खान ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया है। इस्माइल खान का सरेंडर महत्वपूर्ण घटना है। इस्माइल खान के सरेंडर के बाद अफगान सरकार की स्थिति कमजोर हो गई है। क्योंकि तालिबान के सामने सरेंडर करने वाले इस्माइल खान ने पहले शानदार जंग लड़ी है। इस्माइल खान ने सोवियत सेना के खिलाफ जंग लड़ी। यही नहीं 1995 की शुरूआत में तालिबान से भी इस्माइल खान ने जमकर टक्कर ली। हालांकि उस समय उनके साथ हेरात में अहमदशाह मसूद की मिलिशिया भी थी। इसके बावजूद इस्माइल खान आईएसआई और तालिबान के मजबूत गठजोड़ के सामने हार गए थे। उन्होंने भागकर ईऱान में शरण ली थी।
    हेरात में इस्माइल खान की हार के जियो-इकनॉमिक इम्पैक्ट होगा। इसका सीधा प्रभाव भारत, पाकिस्तान औऱ चीन पर पड़ेगा। क्योंकि अब पाकिस्तान के बलूचिस्तान से कंधार-हेरात के रास्ते तुर्कमेनिस्तान तक जाने वाला महत्वपूर्ण आर्थिक गलियारा पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इस गलियारे पर कब्जे के लिए ईरान और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनाव है। चार दशकों से दोनों देश इस गलियारे को लेकर अपना खेल खेल रहे है। ईऱान कभी नहीं चाहता है कि पाकिस्तान इस आर्थिक गलियारे पर मजबूत हो जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान से तुर्कमेनिस्तान तक कंधार और हेरात के रास्ते जाता है। दरअसल अफगानिस्तान के जिन राज्यों से यह गलियारा गुजरता है उन राज्यों की सीमा ईऱान से भी लगती है। ईरान के अपने आर्थिक हित इस इलाके में है।
    तालिबान का कंधार के बाद हेरात पर कब्जे का सीधा असर तापी गैस पाइपलाइन पर प़ड़ेगा। तापी गैस पाइप लाइन एशिया की महत्वपूर्ण योजना है, जो तुर्कमेनिस्तान से भारत तक प्रस्तावित है। तापी गैस पाइप लाइन अफगानिस्तान-पाकिस्तान के रास्ते भारत तक आएगा। तापी गैस पाइपलाइन का प्रस्तावित रूट कंधार और हेरात राज्य के रास्ते है। यह पाइप लाइन अफगानिस्तान में लगभग 700 किलोमीटर लंबी होगी। कंधार से यह पाइप लाइन पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एंट्री लेगी। अब तालिबान इस पाइप लाइन के प्रति क्या रूख अपनाएगा यह समय बताएगा। लेकिन हेरात पर कब्जे के बाद चीन भी परेशान है। क्योंकि बलूचिस्तान से लेकर तुर्कमेनिस्तान तक जाने वाला आर्थिक गलियारा चीन की नजर भी है। चीन से इसे अपनी महत्वकांक्षी योजना बेल्ट एवं रोड पहल में शामिल करना चाहता है।
    हालांकि हेरात पर जितनी तेजी से तालिबान ने कब्जा किया और जितनी तेजी से इस्माइल खान ने हार मानी है, इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे है। क्योंकि इस्माइल खान के सरेंडर के बाद तालिबान ने उनसे अच्छा व्यवहार करने की वादा किया है। दरअसल ईऱान की सीमा से लगते अफगानी राज्यों में तालिबान की आसान जीत को लेकर तमाम सवाल खड़े हो रहे है। एक अहम सवाल यह भी है कि क्या ईऱान और तालिबान के बीच आपसी सहमति बनी हुई है ? इस्माइल खान ईऱान के भी नजदीक रहे है। उधर बीते कुछ सालों में तालिबान और ईरान के बीच संबंध में मधुरता आयी है। सुन्नी तालिबान और शिया ईऱान के बीच 1990 के दशक में संबंध काफी खराब थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में ईरान तालिबान संबंध में नए युग की शुरूआत हुई है। बताया जाता है कि इराक में मारे गए ईऱानी सैन्य कमांडर कासिम सुलेमानी ने तालिबान और ईऱान के संबंधों को सामान्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। आरोप यहां तक लगते रहे कि ईऱान तालिबान के लड़ाकों को अपने इलाके में ट्रेनिंग भी देता रहा है। ईरान तालिबान को हथियार भी उपलब्ध करवाता रहा है। यही नहीं तेहरान स्थित रूसी दूतावास में भी तालिबान के कमांडर नियमित दौरा करते रहे है। तालिबान का मुखिया मुल्ला अख्तर मंसूर ईरान से लौटते हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में पाकिस्तानी सीमा के अंदर मारा गया था।
    संभावना जतायी जा रही है कि इस्माइल खान के सरेंडर और तालिबान का इस्माइल खान के साथ अच्छे व्यवहार का वादे के बीच कहीं न कहीं ईरान भी है। लेकिन इस्माइल खान जैसे सरदार का सरेंडर हेरात के निवासियों के लिए झटका है। इस्माइल खान हेरात में कई रिफार्म लेकर आए थे। इस्माइल खान के यही ऱिफॉर्म तालिबान को पसंद नहीं है। इस्माइल खान ने महिला शिक्षा को लेकर महत्वपूर्ण कदम हेरात में उठाया था। स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर इस्माइल खान ने अच्छा काम किया था। सोवियत सेना की वापसी के बाद इस्माइल खान ने हेरात में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र मे अच्छा काम किया। इस्माइल खान ने 1993 में हेरात में 48 स्कूल चालू करवाए थे, जिसमें लगभग 45 हजार छात्र-छात्राएं शिक्षा ले रही थे। लेकिन 1995 में तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद हेरात के ये सारे स्कूल ब दल करवा दिए गए थे।

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