पँचकुला :09 अगस्त:- आरके विक्रमा शर्मा+ करण शर्मा प्रस्तुति— समस्त ब्रह्मांड की सृजना भगवान शंकर ने अपने आदि अनादि जल और अग्नि पिंड से की है। इसका भेद दुनिया की कोई भी विज्ञान नहीं पा सकती है। और ना ही इसके भेदों का गुणगान चार वेद छह शास्त्र कर पाए हैं।
सृजनशीलता के सारथी भगवान शिव स्वरूप शंकर को विशेष रूप से बारह मास में से सावन मास अति प्रिय है। इस मास में भगवान शंकर पर इंद्र देवता भी बरसात के रूप में जलाभिषेक करते हैं। यह धर्मवत विचार पंडित रामकृष्ण शर्मा जाने-माने समाज सेवक धर्म ज्ञानी ने कुरुक्षेत्र स्थित श्री गीता धाम में धर्म चिंतन के वक्त व्यक्त किए।
वैसे तो पूरा सावन का महीना ही भगवान शिव को समर्पित होता है और भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए श्रद्धालु विधि विधान के साथ उनकी पूजा अर्चना करते हैं और सोमवार के व्रत रखते हैं । लेकिन सावन के महीने में हरियाली तीज व्रत की भी बहुत महिमा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरियाली तीज के दिन ही भगवान शिव और देवी पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। हरियाली तीज हमारे देश में सुहागिनों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हरियाली तीज व्रत इस बार 11 अगस्त बुधवार को पड़ रहा है। मान्यता है कि इस दिन माता शिव व माता पार्वती की पूजा करने व व्रत रखने से अखंड सौभाग्य का वर मिलता है। घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। सावन में पड़ने के कारण इस व्रत को श्रावणी तीज भी कहा जाता है।
हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार माता गौरी ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। एक दिन नारद जी पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गए और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है। इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी।
नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है। यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं। और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया। उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया। भगवान शिव इस तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दिया। इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गए। वह सत्य बात जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गए। शिव इस कथा में बताते हैं कि बाद में विधि-विधान के साथ उनका पार्वती के साथ विवाह हुआ। शिव कहते हैं, ‘हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका। इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनोवांछित फल देता हूं।’
कहा जाता तभी से ही हरियाली तीज मनाने की परंपरा चली आ रही है और यह सुहागिनों का सबसे प्रिय त्योहार माना जाता है जिसका सारा साल सुहागिनों को बड़ी शिद्दत के साथ इंतजार रहता है। संस्कार न्यूज़ साभार।।