मोहाली:- 1 अगस्त:- अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क प्रस्तुति:– फेफड़ों का कैंसर अब तक दुनिया भर में पुरुषों और महिलाओं दोनों में मौत का प्रमुख कारण है। भारत में, यह अब पुरुषों में कैंसर का सबसे आम रूप है, उसके बाद सिर-गर्दन क्षेत्र, और महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों में पांचवें स्थान पर है।
चूंकि इस घातक बीमारी के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली के डॉक्टरों ने 1 अगस्त को घोषित विश्व लंग कैंसर दिवस के अवसर पर लोगों को जागरूक किया है। इस वर्ष की थीम ‘‘आई एम एंड आई विल’’ है और इस दिन को फेफड़ों के कैंसर का जल्द पता लगाने, सावधानियों, रोकथाम और उपचार के विकल्पों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है।
डॉ. दिगाम्बर बेहरा, डायरेक्टर, पल्मोनरी मेडिसन, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली ने इस खतरनाक और जानलेवा बीमारी के विभिन्न जोखिम कारकों, सही डायग्नोसिस और सावधानियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए कहा कि इससे सुरक्षा ही सबसे बड़ा बचाव है।
डॉ.बेहरा ने कहा कि ‘‘फेफड़ों में कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के कारण फेफड़े का कैंसर होता है जो आसपास के ऊतकों में फैल जाता है। यह किसी व्यक्ति की सांस लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और श्वसन अंगों को प्रभावित कर सकता है। लक्षणों की पहचान करना, रोग का निदान करना और प्रारंभिक स्तर पर ही इसका उपचार शुरू करना बेहतर है।’’
डॉ. बेहरा ने जोर देकर कहा कि ‘‘धूम्रपान को फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण माना गया है। सिगरेट, बीड़ी और हुक्का पीना आदि तुरंत छोड़ना होगा। तंबाकू का धुआं फेफड़ों के टिश्यूज यानि ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है और ऑक्सीजन लेने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। तंबाकू के धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड होता है और यह गैस आपके रक्त में ऑक्सीजन को काफी हद तक सीमित कर सकती है, जिससे अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है।’’
निष्क्रिय धूम्रपान करने वालों को भी अपने फेफड़ों को प्रभावित करने का एक बड़ा खतरा होता है। जो लोग उच्च स्तर के रेडिएशन, आर्सेनिक, क्रोमियम, निकल, तांबा, अभ्रक आदि के संपर्क में आते हैं, उनमें भी घातक बीमारी विकसित होने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा, घर के अंदर और बाहर वायु प्रदूषण, विशेष रूप से बायोमास ईंधन और मिट्टी के तेल के संपर्क में आने से फेफड़ों को नुकसान हो सकता है। कुछ लोगों में अनुवांशिक कारणों से भी फेफड़ों के कैंसर के लिए अनुवांशिक प्रवृत्ति होती है। डॉ.बेहरा का कहना है कि 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोग जो नियमित रूप से धूम्रपान करते हैं, उन्हें हर साल छाती का एक्स-रे करवाना चाहिए।
लक्षण
मरीजों में खांसी, बलगम में खून आना, सीने में दर्द, बुखार, कमजोरी, थकान, अस्वस्थता, भूख न लगना और वजन कम होना जैसे लक्षण प्रमुखता से दिखाई देते हैं। तेजी से प्रगति के कारण रोग का आमतौर पर एक एडवांस्ड अवस्था में ही डायग्नोसिस किया जाता है।
डायग्नोसिस
फेफड़े के कैंसर का डायग्नोसिस प्रयोगशाला परीक्षण, पीईटी/सीटी स्कैन और एंडोब्रोनचियल अल्ट्रासाउंड (ईबीयूएस) के माध्यम से किया जा सकता है। जब बायोप्सी की जाती है तो ब्रोंकोस्कोपी आयोजित की जाती है, सटीक नीडल एसप्रिएशन कायटोलॉजी ौर फेफड़ों के तरल पदार्थ की जांच भी कैंसर की प्राथमिक साइट की पुष्टि करती है। पैथोलॉजिकल टेस्ट आदि भी कैंसर के प्रकार और उपचार की सही योजना भी डायग्नोसिस में काफी अधिक मदद करती है।
इलाज
फेफड़े के कैंसर के उपचार में मुख्य रूप से सर्जरी, रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी शामिल हैं। डायग्नोस्टिक सुविधाएं पूरे देश में उपलब्ध हैं।
कोविड-19 रोगियों के लिए सलाह
फेफड़ों के कैंसर के रोगियों में इससे जुड़ी अन्य कई समस्याएं, विशेष रूप से पल्मोनोरी स्थितियों के कारण कोविड संक्रमण की चपेट में आने का अधिक जोखिम हो सकता है। वायरल संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क पहनने जैसे उचित व्यवहार का पालन करना सुनिश्चित करें। सभी मरीजों को अपनी सुरक्षा के लिए कोविड का टीका जरूर लगवाना चाहिए।
साभार न्यूज एक्स इंडिया