ॐ जय शिव ओंकारा आरती के साथ साथ जीवन जीने की कला और कला साधने का साधन

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चंडीगढ़:-26 जून:- आरके विक्रमा शर्मा+करण शर्मा प्रस्तुति:–*यह केवल शिवजी की आरती नहीं है बल्कि ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों की आरती है*

*”ॐ जय शिव ओंकारा”*

यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..

 

लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि… इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..

 

*एकानन* (एकमुखी, विष्णु), *चतुरानन* (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और *पंचानन* (पंचमुखी, शिव) *राजे..*

 

*हंसासन* (ब्रम्हा) *गरुड़ासन* (विष्णु ) *वृषवाहन* (शिव) *साजे..*

 

*दो भुज* (विष्णु), *चार चतुर्भुज* (ब्रम्हा), *दसभुज* (शिव) *अति सोहे..*

 

*अक्षमाला* (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ), *वनमाला* (विष्णु ) *रुण्डमाला* (शिव) *धारी..*

 

*चंदन* (ब्रम्हा ), *मृगमद* (कस्तूरी विष्णु ), *चंदा* (शिव) *भाले शुभकारी* (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..

 

*श्वेताम्बर* (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) *पीताम्बर* (पीले वस्त्र, विष्णु) *बाघाम्बर* (बाघ चर्म ,शिव) *अंगे..*

 

*ब्रम्हादिक* (ब्राह्मण, ब्रह्मा) *सनकादिक* (सनक आदि, विष्णु ) *प्रेतादिक* (शिव ) *संगे* (साथ रहते हैं)..

 

*कर के मध्य कमंडल* (ब्रम्हा), *चक्र* (विष्णु), *त्रिशूल* (शिव) *धर्ता..*

 

*जगकर्ता* (ब्रम्हा) *जगहर्ता* (शिव ) *जग पालनकर्ता* (विष्णु)..

 

*ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका* (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)

*प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका*

 

(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है… आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते हैं.

 

संभवतः इसी *त्रि-देव रुप के लिए वेदों में ओंकार नाद को ओ३म्* के रुप में प्रकट किया गया है ।

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(इसआरती का गूढार्थ/शब्दार्थ पता नही था, आज इस पोस्ट ने भावार्थ बता- भावविभोर कर दिया – इसे आगे भी बढ़ायें)

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