कोरोनावायरस समस्या और समाधान और प्रशासनिक ढांचे की विफलताओं का जिम्मेदार कौन!!

Loading

चंडीगढ़: 22 जून:- आर के विक्रमा शर्मा+करण शर्मा:– 21वीं सदी को आधुनिक अविष्कारों की सदी कहा जा रहा है। लेकिन इसमें नाना प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोग और खोज दोनों संपन्न हुई हैं। इससे भी कड़वा सत्य यह है कि 21वी सदी में ही मानव जाति को ग्रसने के लिए नाना प्रकार के काल रूपी वायरस पैदा हुए हैं। जिनका कोई तोड़ नहीं मिल रहा है। इनमें कोरोनावायरस, वाइट फंगस, ब्लैक फंगस और कोविड-19 की पहली पारी फिर दूसरी पारी। और अब ख्यालात जताए जा रहे हैं कि तीसरी पारी सबसे घातक सिद्ध होने वाली भी आ रही है। सरकार ने इससे निपटने के लिए क्या बुनियादी और पिछली दोनों सुनामी से सरकार ने क्या ठोकर खाई है? और क्या इन बीमारियों का सामना करने के लिए बीड़ा उठाया है। वैक्सीन के रूप में प्राण बचाने वाली दवाइयां भारत में और विदेशों में बनी हैं। इनके बारे में सनसनीखेज एक खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। किसी भी वैक्सीन को किसी भी सरकार द्वारा डब्ल्यूएचओ द्वारा और किसी भी चिकित्सा वैज्ञानिक ज्यूरी  के द्वारा प्रमाण पत्र नहीं प्राप्त हुए हैं। और आनन-फानन में महज छह आठ महीनों में इसको तैयार किया गया। परीक्षण जो किये हैं। बड़े सीमित अवधि के बीच किए गए हैं।परीक्षण की अवधि भी पूरी नहीं हुई है। और इनको लोगों के लिए आपातकालीन दवाई के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है। और यह दावा भी नहीं किया जा रहा है कि इस वैक्सीन को लगवाने के बाद कोई भी इंसान कितने वर्षों तक सुरक्षित रह पाएगा। सोशल मीडिया पर यह भी पढ़ने को पाया गया है कि इस वैक्सीन के बाद महज इंसान 2 या 3 साल बेहतरीन सुरक्षित जीवन जी रहा है। उसके बाद उसको और दूसरे वायरस से बचाने के लिए यह सक्षम नहीं है।

हैरत की बात तो यह है आपातकालीन में लांच की गई यह वैक्सीन अपने आप में ही असुविधाएं खड़ी करने में सक्षम हैं!। जिस किसी को एक डोज लगी है उस दायरे में भी बहुत सी मौतें होने के समाचार हैं। और जिन्होंने दोनों डोज लगवाई हैं। उस दायरे में भी लोगों के मरने के समाचार सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिल रहे हैं। और अगर यह सब अफवाह भी हैं या ज्यादातर खबरें अफवाह हैं। तो इन पर अंकुश लगाना भी सरकार का दायित्व है। बहुत से लोगों ने दोनों डोज लगवाने के बाद भी मौत को गले लगाया है। अभी तक कहीं से भी कोई पुष्ट स्वीकृति सामने नहीं आई है कि वैक्सीनेशन के बाद आदमी जीवन पर्यंत बिल्कुल सुरक्षित है। उसे डिप्रेशन की कोई परिस्थिति पेश नहीं आएगी।  सुखद सुरक्षित खुशहाल शांत मय जीवन जिए, ऐसा किसी भी मंच से कोई भी घोषणा किसी भी नेता ने चाहे वह पक्ष है या विपक्ष नहीं की है। किसी ने भी जनता को यह विश्वास दिलाने की जहमत उठाई ही नहीं है।  जनता को ढांढस बंधाने का दायित्व कोई भी पूरा इमानदारी से नहीं निभा पाया है। शिवाय अपनी-अपनी सत्ता लोलुपता को भुनाने के किसी ने भी अपना मानवीय चेहरा जनता के सामने नहीं दिखाया है। कोविड-19 से लाखों लोग अकाल मृत्यु का ग्रास बने हैं। और प्रबंधकीय ढांचों की हिलती हुई चूलें अक्सर सामने आती रही हैं। हैरत की बात तो यह है 2019 में शुरू हुई कोरोनावायरस की बीमारी देखते-देखते समुचित दुनिया में महामारी का रूप ले चुकी है। लेकिन अभी तक इसके वायरस के बारे में उससे होने वाली समस्याएं, उन समस्याओं से निपटने के लिए समाधान हों की कोई रूपरेखा किसी भी देश की चिकित्सा प्रणाली ने पुष्ट नहीं की कि आखिर यह बीमारी है क्या और इसका समाधान क्या है। कहने को हम आधुनिक सदी में प्रवेश कर चुके हैं। लेकिन एक वायरस से निपटना तो दूर उसके मूल सिद्धांत तक का कारण नहीं ढूंढ पाए हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

159173

+

Visitors