आजाद भारत के गुलाम
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चुनाव आयोग, सतर्कता आयोग,
सूचना आयोग सहित
कई संवैधानिक पदों पर
और संवैधानिक संस्थाओं में भी
गुलाम बैठाए जाने लगे हैं।
जो संविधान को सरकार में बैठे
दल के हिसाब से
परिभाषित और अवतरित करने लगे हैं।
अब बताने की जरूरत नहीं रही
कि कई मिडिया घराने भी
सत्तारुढ़ दल की गुलामी पर
मजबूरन उतरने लगे हैं।
इन सारे गुलामों की मदद से
जनता को गुलाम बनाकर
सत्तादल देश में घुम घुम कर
लोकतंत्र को छलने लगे हैं।
एक बार फिर से देश
गुलाम हो चला है,
राजतंत्र के नए अवतार
दलतंत्र के दस्यु गिरोहों का,
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
===============
————————ग़ुलाम कुन्दनम्
नोट:- इस रचना में दिए गए विचारों को व्यव्हार में मैंने अपने हाथों से
तोला है, अजमाया है। 2010-11 से लेकर अब तक मेरा कई संस्थाओं से पाला
पड़ा। उन्हीं अनुभवों और वर्तमान परिदृश्यों की प्रतिछाया है यह रचना ।
कांगेस सरकार में भी यह सब होता था और भाजपा सरकार में तो उससे भी ज्यादा
हो रहा है। प्रस्तोता ; अल्फ़ा न्यूज इंडिया
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चुनाव आयोग, सतर्कता आयोग,
सूचना आयोग सहित
कई संवैधानिक पदों पर
और संवैधानिक संस्थाओं में भी
गुलाम बैठाए जाने लगे हैं।
जो संविधान को सरकार में बैठे
दल के हिसाब से
परिभाषित और अवतरित करने लगे हैं।
अब बताने की जरूरत नहीं रही
कि कई मिडिया घराने भी
सत्तारुढ़ दल की गुलामी पर
मजबूरन उतरने लगे हैं।
इन सारे गुलामों की मदद से
जनता को गुलाम बनाकर
सत्तादल देश में घुम घुम कर
लोकतंत्र को छलने लगे हैं।
एक बार फिर से देश
गुलाम हो चला है,
राजतंत्र के नए अवतार
दलतंत्र के दस्यु गिरोहों का,
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
गुलामी को अब हम अपनी
नियति समझने लगे हैं।
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————————ग़ुलाम कुन्दनम्
नोट:- इस रचना में दिए गए विचारों को व्यव्हार में मैंने अपने हाथों से
तोला है, अजमाया है। 2010-11 से लेकर अब तक मेरा कई संस्थाओं से पाला
पड़ा। उन्हीं अनुभवों और वर्तमान परिदृश्यों की प्रतिछाया है यह रचना ।
कांगेस सरकार में भी यह सब होता था और भाजपा सरकार में तो उससे भी ज्यादा
हो रहा है। प्रस्तोता ; अल्फ़ा न्यूज इंडिया