21वीं सदी की यह त्रासदी भूलाए भी नहीं भूल पाएंगी भावी पीढ़ियां

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पंचकूला 15 जून आर के विक्रम शर्मा प्रस्तुति — कोरोना संक्रमितों की घटती संख्या को कोरोना की दूसरी लहर का अंत माना जा रहा है। अंत की घोषणा भले ही न हुई हो, लेकिन देश के कई राज्यों में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कई राज्यों में लॉकडाउन की सख़्तियों में ढील दे दी गई है। बाजारों के साथ ही धार्मिक स्थानों को पहले की तरह भी खोल दिया गया है। अब जब अनलॉक की चरणबद्ध प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते सभी का परम कर्तव्य है कि हम खुद को सुधारें और कोविड उपयुक्त व्यवहार को अपने जीवन में शामिल करें। लेकिन अख़बारों, टीवी समाचार चैनलों और सोशल मीडिया के विभिन्न लोकप्रिय अड्डों में घनघोर लापरवाही के समाचार देखते-पढ़ने के बाद भी मजाल है कि हम खुद के व्यवहार को सुधारें और कोविड उपयुक्त व्यवहार करें। यह बात गर्वनमेंट कालेज सेक्टर 1 के असिस्टेंट प्रोफेसर अनिल कुमार पांडेय ने एक प्रेसविज्ञप्ति जारी करते हुए कही ।

हम सब निराले प्रकृति के लोग हैं। दिनभर में सैकड़ों बार अपने जेब से नोटबुक के आकार के स्मार्टफोन निकालकर उसके चमचमाते डिस्पले में सोशल मीडिया के ठिकाने ढूँढकर कोरोना प्रोटोकाल की धज्जियाँ उड़ाने वाले वायरल वीडियो दिन-रात देखकर लोगों की मूढ़ता पर ठहाका लगाकर हँसते हैं। समाचार पत्रों के भौतिक और ई-संस्करणों को भी अपने स्मार्टफोन में निहारकर कोरोना संक्रमितों और मरने वालों का आंकड़ा जानने की जुगत भिड़ाते हैं। समाचार चैनलों में एलौपैथी बनाम आयुर्वेद की बहसें देखकर मजा लूटते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद कोरोना जागरूकता के नाम पर हमारे कान में जूँ तक नहीं रेंगती। अगर थोड़ा बहुत जूँ रेंगती भी है तो कोरोना से लड़ने के नाम पर हम अपने मुँह पर अड़ा-टेढ़ा मास्क चस्पा कर लेते हैं। कभी ठुड्डी पर तो कभी उसके नीचे। आज हालात ये हैं कि मास्क नाक-मुँह से नीचे उतरते हुए घरों की खूँटियों में टंग गए हैं। कोरोना की पहली लहर में मास्क और पीपीई किट से जूझने वाले लोग आज फेस शील्ड, डिस्पोजेबल दस्ताने और मास्क की बहुतायत से घिरे पड़े हैं। कपड़ों के साथ अब मैचिंगदार मास्क भी मिलने लगे हैं। लेकिन हम सब तो मगरमच्छ हैं! मास्क से नाक-मुँह ढँकता ही नहीं है।

 

कोरोना की पहली लहर में देश में तकरीबन सौ दिनों की पूर्णबंदी रही। जिस कारण से कोरोना के मामले उस तेज़ी से नहीं बढ़े, जितना की दूसरी लहर में भयावह तरीके से बढ़े हैं। पहली पूर्णबंदी के बाद जब देश धीरे-धीरे अनलॉक हुआ तो लोग पहले की तरह ही घरों से बेरोक-टोक निकलकर और अपनी नागरिक जिम्मेदारी को ताक पर रखकर एक बार फिर से सामाजिक दूरी के वांछित कोविड उपयुक्त व्यवहार की जमकर धज्जियाँ उड़ाने लगे। मेले-महफिलें सजने लगीं, बाजार लोगों की आमद से गुलजार हो गए। बाजार में कोरोना विरोधी टीकों की आमद और बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण अर्थव्यवस्था के पहिए भी एक बार फिर से सरपट भागने लगे। पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था, आम जनजीवन की बहाली और कोरोना के खिलाफ जंग जीत लेने की खुमारी में लोग पहले से कहीं ज्यादा बेपरवाह और लापरवाह हो गए। जिसका अंदेशा था, आख़िर वही हुआ। कोरोना इस बार अपनी दूसरी लहर पर सवार होकर हिंसक आततायी की तरह लोगों पर टूटकर राहू की तरह उन्हें ग्रसने लगा। क्या युवा और क्या बुजुर्ग? लाखों लोगों को कोरोना ने असमय ही लील लिया। सैकड़ों घर-परिवार उजड़ गए। बच्चे अनाथ और असहाय हो गए। किसी का सिंदूर उज़ड़ गया तो किसी के घर का कमाऊ पूत घर से विदा हो गया। स्थिति ऐसी बनी कि लोग सन् 1920 में फैली स्पैनिश फ़्लू की महामारी से इस महामारी को जोड़कर देखने लगे।

 

देश कोरोना की प्रलयंकारी मार के चलते एक बार फिर से लॉकडाउन के आगोश में चला गया। राज्यों ने एक बार फिर से अपनी स्थिति-परिस्थिति के अनुसार लॉकडाउन लगाए। अब जब कोरोना के मामले समुद्र के आए ज्वार-भाटे की तरह उफान मारने के बाद अपने पैर समेट रहे हैं तो हम सभी को पहली लहर के बाद अनलॉक होने पर बरती गई लापरवाही से सबक सीखकर अपने पैरों में जिम्मेदारी के बंधन डालकर घर-दफ़्तर और केवल जरूरी कामों तक ही सीमित रहने की जरूरत है। वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कोरोना के तीसरी लहर के आने की आशंका जाहिर की है। ऐसे में बतौर नागरिक हम सब की जिम्मेदारी पहले की तुलना में कहीं अधिक है। अगर घर से निकलना बहुत ज़रूरी हो तो घर से बाहर भी सुरक्षित सामाजिक दूरी बनाकर रखना हमारी अहम जिम्मेदारी है। सभी लोग अनिवार्य रूप से मास्क का उपयोग करें और हर संभव तरीके से समय-समय पर अपने हाथों को धुलते या सैनीटाइज़ करते रहें। कोरोना से लड़ाई टीकों के आ जाने के बाद पहले के मुकाबले अब कहीं ज्यादा आसान हो गई है। लिहाजा मौका आने पर टीका लगवाएँ, सतर्क रहें और लोगों को भी जागरूक करें। कोरोना के साथ इस आरपार की लड़ाई में टीके के साथ मास्क और सामाजिक-देह दूरी वह अमोघ अस्त्र हैं जो कोरोना रूपी रावण के उर में संचित अमृत के कुंड को सुखाकर संपूर्ण मानवता को उससे मुक्ति दिला सकते हैं।

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