कोविड-19 का छंटेगा अंधेरा, जाग रहा हर कोई, जल्दी ही होगा सवेरा

Loading

चंडीगढ़ : 13 मई :–आरके के विक्रमा शर्मा+करण शर्मा+हरीश शर्मा:— क्या जमाना आ गया। जो राजा अपनी प्रजा का छोटे से छोटा दुख देखकर भाव विह्ल हो उठता था। आज वह अपनी प्रजा को तड़प तड़प कर मरते हुए भी नहीं देख पा रहा है। दिल्ली राजस्थान और  पंजाब सहित तमिलनाडु व महाराष्ट्र स्टेटस में कोरोना की मार सर्वाधिक पड़ रही है। और वहां की सरकारें केंद्र की पारदर्शी सहायता के लिए छटपटा रही हैं। जीवन रक्षक कही जाने वाली वैक्सीन की डिस्ट्रीब्यूशन अपने आप में भेदभाव का शिकार हुई बताई जा रही है। बहुत जरूरी था कि जिन प्रांतों में कोरोनावायरस  तबाही मचा रहा है। उन्हें प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन मुहैया करवाई जाती और यह भी सुनिश्चित किया जाता कि पहली दो उसके बाद दूसरी डोज उपलब्ध रहती। 2019 में शुरू हुए इस महामारी ने एलोपैथी की कमर तोड़ कर रख दी है और आयुर्वेदिक पद्धति का सिर ऊंचा किया है और यह ना सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद में अपने पूर्वक पौराणिक काल की तरह झंडे गाड़ दिए हैं। गर्व की बात तो यह है कि विदेशों ने हमारी आयुर्वेदिक पद्धति को सिर माथे लिया और बुनियादी तौर पर उसे अपनाया और पहले से भी सदृढ़ और स्वस्थ जीवन पाया।

महामारी का पहला तूफान हमारे केंद्र सहित प्रांतीय सरकारों को भी सजग होकर जागने का सबक दे गया लेकिन हमारी सरकारें हमारे देशवासियों को गुमराह करने से कोई मौका नहीं चूकती रहीं। देश के राजा ने समय-समय पर विभिन्न हालातों के चलते अपने आवाम को हर चौकसियां और बुनियादी सावधानियां बरतने की बड़े मंचों से बार-बार सलाहें दीं। हैरत की बात तो यह है कि सहयोगी मंत्रियों ने कभी अपने आलीशान बंगलों से निकलकर अपनी उस जनता की खैर खबर तक नहीं ली। जिनकी वोटों के सिर पर वह सतता सुख भोग रहे हैं। जनता महामारी की सुनामी में तड़प तड़प कर दम तोड़ती रही और हमारे नेता एक कुर्सी के लोग में अपने जीते जागते इंसानों के लिए अपनी बनती भूमिका निभाने से नाकामयाब रहे।

सरकार जगी या नहीं यह तो बड़े मसले बड़ी फुर्सत के दौर में ही डिसकस होंगे और कोई डिसीजन आएगा और फिर नजला जनता पर ही गिरेगा सरकारों की ऐसी पारदर्शिता भरी कार्यवाही की गाज अपने नागरिकों पर ही गिरती है।

कोरोनावायरस के चलते दवाइयों का खानापूर्ति एक षड्यंत्र से ज्यादा अपने आप को कुछ भी सिद्ध नहीं कर पाई। लाखों लोग मौत का ग्रास बने तो लाखों लोग भूख से भी मरे और इस दौरान नाना प्रकार के दुख और दर्द सहे अभाव और भूख सही लेकिन सरकारों ने अपनी नैतिकता अपनी संवैधानिक भूमिका के प्रति उदासीनता किस स्तर तक भर्ती यह आज कोविड-19 की सुनामी के दूसरे मौत के तांडव से पता चल रहा है पिछले वर्ष हर आदमी यह तय कर चुका था कि अगर ऐसी महामारी निकट भविष्य में कभी आएगी तो भारत देश इस काली महामारी से निजात पा लेगा सरकार भूखों को भरपेट भोजन उपलब्ध करवाने में कितनी सफल सिद्ध हुई यह तो तब ही पता चल जाता जब गुरुद्वारे मंदिर मस्जिद और चर्च की ओर से पीड़ितों को गरम स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन उपलब्ध करवाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी गई और यह लंगर आज भी मंदिर गुरुद्वारे चर्च और मस्जिदों की ओर से अटूट बताए जा रहे हैं लेकिन सरकार की खाली झोलियां सरकार पर लानते दे रही हैं ।  कोविड-19 का अदद सैंपल करवाना आज सत्तासीन सरकार से जवाब लेने के तुल्य है। कोविड-19 की दूसरी सुनामी में जहां दानवीर नागरिक और धार्मिक संस्थाएं एनजीओ कुंभकरण नींद से सरकारी अधिकारियों को जगाने में नाकामयाब रही है।

अनेकों देशभक्त शूरवीर सैनिक पुलिस अधिकारी व कर्मचारी व  अध्यापन से जुड़े अध्यापक गण बेमौत मरते रहे। सरकारें चुनाव जीतने के लिए मरने वालों की तादाद पर रोटियां सेंकने से बाज नहीं आए। कोविड-19 की दूसरी सुनामी में देशवासी मूलभूत दवाइयों और उपकरणों की भारी कमी के चलते तड़पते हुए प्राण त्याग रहे थे और हमारे देश के सफेदपोश चुनावी प्रांतों में एक दूसरे प्रतिद्वंदी पर गंदे जिंदगी जिंदगी फेंकने से बाज नहीं आ रहे थे इन्हें अपने देशवासियों की कतई परवाह तक ही नहीं रही थी यह तो भला हो तमाम सिक्स मार्च का अक्षरधाम जैसे बड़े मंदिरों का और अनेकों मस्जिदों और चर्चों का जिन्होंने पिछले साल भूखों के पेट भरे थे इस मर्तबा लोगों को दवाइयां बेड ऑक्सीजन सिलेंडर ऑक्सीमीटर थर्मामीटर और अनेकों गुणकारी पहाड़े की सामग्री अवैध रूप से बांट रहे हैं और सरकारें पप्पू यादव जैसे इस वक्त मानवता प्रेमी को अरेस्ट कर जेल में ठूंस ने के षड्यंत्र में मशगूल हैं। अगर हमारे देश के दानवीर लोग ना जागते तो आज पूरी दुनिया में कोविड-19 से मरने वालों का रिकॉर्ड भारत के सर होता है। और अब तो यह भी देखा जा रहा है कि शर्मिंदगी उठाते हुए सरकार भी अब इनसे वासियों को देखकर जागना शुरू हो रही है लेकिन अभी भी समरथ लोग अपने ऐसो आराम से बाहर नहीं जा रहे हैं नतीजे पशु और पक्षी आज इंसानों का मुंह चिढ़ा रहे हैं। इंसान इंसान को खा रहे हैं चंद्र नोटों के खातिर बेमौत मारे जाने वाले अभावों के शरीर के बेशकीमती अंग निकाले जा रहे हैं। यह अपनी तरह का एक अलग ही बाजार सजाए बैठे हैं। महामारी की दूसरी सुनामी में डॉक्टरों और केमिस्ट ओने खुद अपने मुंह पर कालिख पोतने के घिनौने शर्मनाक कामों को अंजाम दिए हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

133383

+

Visitors