कोविड-19 अपनी गति और मारक क्षमता सहित दायरे में कर रहा वृद्धि, बदले में 4 पी साबित हो रहीं दकियानूसी

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चंडीगढ़:- 7 मई :–आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा/एनके धीमान :– कोरोनावायरस वैश्विक महामारी का छोटा रूप रूप कोविड-19 अपना क्षेत्रफल अपनी मारक क्षमता और अपनी ब्राइटी में सुधार लाने में सफल सिद्ध हो रहा है। और उसके सामने आधुनिक विश्व की चिकित्सा पद्धति और दूसरी अन्य अविष्कार की गई उपलब्धियां नकारा साबित हो रही हैं! कोविड-19 का दूसरा चरण अकाल मृत्यु का प्रचंड तांडव नाच रहा है। और मानवीय कृत्रिम उपलब्धियां मूकदर्शक के सिवा कुछ साबित नहीं हो पा रही हैं। अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं कि कोविड-19 वायरस से बचाने वाली वैक्सीनेशन की पहली डोज पर अनेकों खासकर युवाओं को जल्दी पॉजिटिव होते देखा गया है। अनेकों लोगों की मौत वैक्सीनेशन की दूसरी डोज लेने के बावजूद भी होना चिकित्सा पद्धति और चिकित्सा से जुड़े वैज्ञानिकों की अभी भी नाकामी की ओर इशारा करती हैं। अगर यह वैक्सीनेशन कारगर सिद्ध होती, तो लोग एक दूसरे से आगे बढ़कर वैक्सीनेशन का लाभ उठाते। क्योंकि गरीबों से कहीं ज्यादा अमीरों को अपनी जान के लाले पड़ते देखे गए हैं। कोविड-19 अपने दूसरे चरण की पारी एक सुनामी के रूप में खेल रहा है। और इस सुनामी में बच्चों से लेकर बड़ी उम्र के बुजुर्गों तक को डूबते देखा गया है। अस्पतालों में बेड, दवाइयां, नर्सिंग स्टाफ व चिकित्सक, इंजेक्शन, टेबलेट, ऑक्सीजन सिलेंडर इनकी भारी किल्लत देश के लाखों नागरिकों सहित नामचीन हस्तियों का भी जीवन लील गई हैं। कब्रिस्तान और श्मशान घाटों के बहार अपने-अपने दिवंगतों के सुपुर्द-ए-खाक और अंतिम संस्कार के लिए लंबी कतारें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकारों के मुंह पर करारा तमाचा हैं। भेद शून्य और भावहीन  हमारी सरकारें बेशर्मी से लीपापोती के सिवा कुछ और कर जातीं, तो लाखों की जानें बच जातीं। देश के बेशकीमती हीरे अकाल मृत्यु का ग्रास ना बनते हैं।

देश का चौथा स्तंभ जो कि तीन स्तंभों को हकीकत का और बुनियादी सुविधाओं दुविधाओं का शीशा दिखाता। आज उसका अपना चेहरा कुरुप रूप ले चुका है। आज मीडिया को बिकाऊ, दलाल और गोदी मीडिया के नाम से पुकारा जा रहा है। और यही दशा मौजूदा मीडिया की दिशा ही बदल चुकी है। यदा-कदा जो लोग इमानदारी से हिम्मत से अपनी सामर्थ्य से बढ़कर विकट परिस्थितियों से लोहा लेते हुए किसी सच को उजागर करता है। उसको खुलेआम वर्दी की मौजूदगी में सफेदपोशों के इशारे पर ब्यूरोक्रेसी की चुप्पी के चलते पेट्रोल डालकर तड़पा तड़पा कर, दहशत का माहौल बना कर मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है। यह आने वाले कालिख पुते कल की आहट है।  सरकारों को ही नहीं, पब्लिक व प्रेस सहित पुलिस और हमारे प्रशासन को भी संभलना ही होगा। नहीं तो हम तो डूबे सनम सबको ले डूबेंगे। यही कहावत चरितार्थ होगी। शर्मो हया से दूर भागती हमारी सत्तासीन हस्तियां चुनावों की रैलियों में तो गले फाड़ती सुनी गई हैं।लेकिन कभी किसी परिवार के कई कई परिजनों की दर्दनाक खौफजदा हुई मृत्यु पर शोक संवेदना व्यक्त करने तक की जहमत नहीं उठाते देखे गए हैं। लानत है ऐसी सरकारों पर, ऐसी हस्तियों पर जिन पर इस देश के नागरिकों ने उनके नाम पर मतदान करके अपनी आस्था अपना विश्वास और फिर अपने ही फैसले से उसका गला घोट दिया है। देश दवाइयों के अकाल से जूझ रहा है। विदेशी लोग भारत की इस विकट परिस्थितियों में जिस तरह से मदद के लिए आगे आए हैं। उनका कृतज्ञ राष्ट्र भारत तहे दिल से शुक्रिया अदा करता है। इससे भी बड़ी बात है कि जिन मूल्कों में भारत जैसे ही भयावह हालात हैं। वहां भारत ने भी वैक्सीन की खेप भेजने में कोताही नहीं बरती है। और इन सब के लिए भारत सरकार की पीठ थपथपाना हर नागरिक की नैतिकता का दर्पण है। हम शर्मसार तो तब होते हैं। जब देखते हैं कि कोविड-19 के भय से सफेद खद्दर धारी अपने करोड़ों रुपयों की कीमत के आलीशान सर्वेश्वर्य युक्त बंगलों में दुबके बैठे हैं। लेकिन सत्ता सुख भोगने की लालसा के चलते चुनाव रैलियों में बनावटी हंसी हंसते हुए, सियार की तरह दांत निकालते हुए, जनता को गले लगाते देखे गए। मंचों से गला फाड़ फाड़ कर फरेबी भाषण देते देखे गए। लेकिन किसी भी लाचार और अपनों को खो चुके बिलखते बच्चों के सिर पर हाथ रखने की जहमत नहीं उठाते देखे गए हैं। मीडिया का काम बस संक्रमितों की संख्या बताना और किन-किन अस्पतालों से कितने कितने लोग जिंदा वापस नहीं आए। उनकी संख्या बताना मात्र रह गया है।

अल्फा न्यूज़ इंडिया की तमाम छोटे बड़े प्रिंट मीडिया सोशल मीडिया सेटेलाइट मीडिया सभी से पुरजोर गुजारिश है कि वह सकारात्मक पत्रकारिता का दंभ भरें। और लोगों में सकारात्मक सोच, उत्साह, जीने की प्रबल भावना को जागृत करें। और नकारात्मक पत्रकारिता, शवों के ढेर, जलती चिताओं, चीखते चिल्लाते परिवार, बेगानों की भीड़ में अपनों को खोजती नन्ही नन्ही आंखों कि आस का दीया जगाएं। और बुनियादी जरूरतों के लिए भागते परिवारों को कैमरों की नजर से प्रशासन और सरकारों के सामने लाएं।जो बचते हैं उन्हें तो बचाएं। और जो नहीं बच पाए हैं। उनके निमित्त बनते नैतिक अधिकारों की आहुति ना देते हुए, उनका रीति-रिवाजों के मुताबिक दाह संस्कार करवाएं। आज मीडिया की भूमिका गौण होकर ना रह जाए। इसके लिए मीडिया को सबल कदम उठाते हुए सकारात्मक मीडिया धर्मिता का चेहरा दिखाना ही होगा। ताकि लोगों में जीवन जीने की लालसा बढ़े ना कि जीवन को समय से पहले ही डिप्रेशन में दहशत के चलते जीवन गंवाने की ललक बढे।।

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