सम्मान के सवाल पर सोने की लंका जलाई गई थी फिर बाकियों की तो औकात की बिसात ही नहीं

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चंडीगढ़:- 6 मई :-आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा:– भारत जैसी धर्म और कर्म स्थली में महाभारत में राजनीति का जो पतन हुआ था। वही तत्कालीन विश्व युद्ध का सबब बना था। आज देश में जो अराजकता, विषमता और नाना प्रकार की अनियमितताएं, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और बलात्कारी प्रचलन, राजनीति और धर्म नीतियों का बेड़ा गर्क हो रहा है। वह महाभारत से थोड़ा हटकर है। महाभारत में नीतियों रीति-रिवाजों और बड़ों का भले ही अनादर हुआ है। लेकिन फिर भी वहां  षड्यंत्रों को संभालने वाले भगवान श्री कृष्ण जी उपस्थित थे। अर्जुन और भीम जैसे उनके पास पराक्रमी माध्यम थे। लेकिन आज देश में जो नकारात्मक वातावरण हर पहलू, हर विषय से बना हुआ है। उसको भेदना सदा सदा असंभव है। क्योंकि पुरानी पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी तक कहीं भी साकारात्मक सोच का प्रखर रूप नहीं दिखाई देता।

यहां आपको यह पूर्णतया कड़वा सच स्पष्ट किया जाता है कि रामायण के दौरान राजनीति का पतन नहीं हुआ था।। रामायण के दौरान हुए विश्व युद्ध में एक शिक्षित व्यक्ति द्वारा गलत नीतियों का आचरण और ध्रुवीकरण करके एक पूरी अपनी सभ्यता का विनाश कर दिया गया था। क्योंकि वह किसी भी विद्वान पारखी और अनुभवी की बात सुनता ही नहीं था। इसी वजह से सोने की लंका जली। और उसके कुल का नाश हुआ। आज भी परिस्थितियां यथावत बनी हुई हैं। आज युवा अपनी सोच से और बुजुर्ग अपनी सोच से चल रहे हैं। अपनी डफली अपना राग देश का सत्यानाश कर रहा है। जरूरत है युवा लोग बुजुर्ग वर्ग की बात मानें। उनके अनुभवों का अनुसरण करें। उनके ज्ञान भंडार का यथोचित प्रयोग करते हुए, देश में विकास, समृद्धि व आत्मनिर्भरता और चारों ओर आदर्शो का स्थापत्य करें। देश की निष्पक्ष लेटर दूरदर्शी विवेक  तीसरी आंख प्रेस आज किसी को भी अच्छे भाव से इंप्रेस करने में फिसड्डी बन चुकी है। खुद प्रेस ही पतन हीनता का पर्याय बनती जा रही है। अतः सच और स्पष्ट और दो टूक बात तो यह है कि आज बाढ़ ही देश को खा रही है। और रक्षक ही पूर्णतया भक्षक बने हुए हैं। जनता 21वीं सदी की आधुनिक शिक्षा पद्धति को अपनाने के बावजूद भी भेड़ों के झुंड से ज्यादा कुछ भी अपने आप को साबित करने में नाकाम रहे हैं। और अभी रहेंगे। अगर इनमें कुछ लियाकत होती तो देश की दशा सुधर जाती। और देश एक अच्छी सकारात्मक दिशा का राही बन जाता।। जिन के ऊपर देश को बाहरी शत्रुओं से सुरक्षित रखने का जिम्मा है। वह सब कायदे कानून कर्तव्य भूल कर देशभक्त फौजियों का, फौजी मशीनरी का किस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं। यह उन्हीं के ही आला अफसरों द्वारा दिए जाने वाले वक्तव्यों से समझ आज सकता है। दूध के धुले ढूंढने से भी नहीं मिल रहे हैं। जिस वर्दी पर देश की जनता विश्वास करती थी। आज वह वर्दी औरों से तो छोड़ो, खुद से भी विश्वासघात करने का मौका नहीं चूकती है। कोरोनावायरस सी वैश्विक महामारी अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर बचाने वाले चिकित्सा समाज के तमाम प्राणी धन लोलुपता का शिकार होकर इंसानियत खो चुके हैं।और जो डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ, स्वयंसेवक व समाजसेवी और वर्दीधारी पीड़ितों, प्रभावितों को बचाने में मदद पहुंचाने में लगे हुए हैं। धन लोलुपता का शिकार वर्ग उनकी नेक कमाई पर कालिख पोतने में कोताही नहीं बरत रहा है। हर कोई अपने फर्ज से मुंह मोड़ कर, दूसरे पर कीचड़ फेंक रहा है। यह हमारी राजनीति, यह हमारी धर्म शिक्षाओं, परिवारिक संस्कारों इन सब का मुंह काला कर रहा है। यह जो कुछ भी लिखा गया, इंगित किया गया व भावपूर्ण इशारा किया गया। यह सब व्यर्थ है। क्योंकि पढ़ने के बाद कोई विचार तक नहीं करेगा कि यह चंद शब्दों में आज की मौजूदा परिस्थिति को शीशा दिखाने की चेष्टा कितनी सार्थक बनी है।।

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