सेवा पाँच प्रकार की होती, सेवा निस्वार्थ भाव से करें

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चंडीगढ़:-31 जनवरी:- आरके विक्रमा शर्मा/ करण शर्मा प्रस्तुति:-

▪ पहले प्रकार की सेवा वह है जब तुम्हें पता भी नहीं चलता कि तुम सेवा कर रहे हो । तुम उसे सेवा की तरह नहीं देखते क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है – तुम उसको करे बिना रह ही नहीं पाते ।

▪ दूसरे प्रकार की सेवा तुम इसलिए करते हो, क्योंकि वह उस परिस्थिति की ज़रूरत है ।

▪ तीसरे प्रकार की सेवा तुम इसलिए करते हो क्योंकि यह तुम्हें आनन्द देती है ।

▪ चौथे प्रकार की सेवा इसलिए की जाती है, क्योंकि तुम पुण्य कमाना चाहते हो – तुम भविष्य में किसी लाभ की अपेक्षा से सेवा करते हो ।

▪ पाँचवे प्रकार की सेवा तुम केवल दिखावे के लिए करते हो, अपनी छवि को अच्छा करना चाहते हो और समाज या राजनीति में अपनी पहचान बनाना चाहते हो । इस प्रकार की सेवा से केवल थकान होती है जबकि प्रथम प्रकार की सेवा से बिल्कुल थकान नहीं होती ।

भले ही तुमने जिस भी स्तर से सेवा प्रारम्भ की है। पर अपनी सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने लिए तुम्हें उच्चतर स्तरों की ओर बढ़ना चाहिए ।

 

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