कुछ तो है दम, कि सब पर भारी पड़े हैं हम, ना सावन हरे न भादों सूखे

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चंडीगढ़: 28 नवंबर:-आरके विक्रमा शर्मा/ एनके धीमान:— कभी सोचा है कि यह कितना कड़वा सच है कि किसी झूठ को बार-बार कहने से एक दिन वह भी सच हो जाता है और उसी रूप में संसार में व्यापक होकर स्वीकार्य हो जाता है।। यहां कुछ बहुत ही सटीक उदाहरण किसी व्हाट्सएप यूजर ने अल्फा न्यूज़ इंडिया के माध्यम से हिंदू समाज को समर्पित किए हैं। उनकी बानगी पढ़ कर समझ कर देख कर स्पष्ट हो जाएगा कि आमुक धर्म विशेष के लोग दुनिया के सबसे प्राचीन पौराणिक ऐतिहासिक धर्म की पराकाष्ठा और गरिमा को किस तरह पददलित करने का षड्यंत्र सदियों से चलाए हुए हैं। पर नतीजा यही कि भवन का बना हुआ खंडहर बता देता है कि अपने समय में यह भवन किस प्रकार की विशालता और सजावट का सबब रहा होगा।।

(1) गुनाहों का देवता ही क्यों होता है ख्वाजा या पीर क्यों नहीं ?

(2) हवस का पुजारी ही क्यों होता है मौलाना या मौलवी क्यों नहीं ?

(3) मुँह में राम बगल में छूरी ही क्यों होता है ? मुँह में अल्लाह बगल में छुरी-कट्टा क्यों नहीं ?

(4) राम नाम जपना पराया माल अपना ही क्यों होता है ? जबकि इतिहास देखने पर पता चलता है कि अल्लाह खुदा बकना पराया माल (धन-सम्पत्ति-स्त्री इत्यादि) अपना करने की उनकी प्रवृत्ति व परंपरा रही है ।

(5) मूवी इत्यादि में हर अपराध मंदिर में ही क्यों होता है मस्जिद या चर्च में क्यों नहीं ?

(6) धर्म के नाम पर लूटने वाला पंडित ही होता है कभी मौलवी/ पादरी नहीं ?

(7) फ़िल्म का मुख्य खलनायक अक्सर गले में रुद्राक्ष की माला या बड़ा सा तिलक लगाए हुए होता है मुस्लिम टोपी या चर्च के फादर के गाउन में नहीं । जबकि रहीम और रहमान चचा जैसे किरदार भले ही किसी अपराध में कारावास में बंद होंगे, परंतु वो दया व त्याग की प्रतिमूर्ति होंगे व 5 समय के नमाजी व धर्म पे चलने वाले होंगे ।

(8) पुरानी फिल्मों में प्रायः दुराचारी पूरी फ़िल्म में राम-राम या शिव-शिव का उच्चारण किया करते थे, कभी पीर, पैगंबर, खुदा, अल्लाह, जीजस का नहीं ।

(9) फिल्मों में प्रायः ये दर्शाया जाता रहा है कि बिल्ला सं० 786 और 📷से बड़ा चमत्कार होता है और नायक की जान बच जाती है, जबकि हिन्दू प्रतीक चिह्नों को कभी नहीं दिखाया जाता ।

(10) शुद्ध हिंदी भाषा अधिकतर खलनायक की भूमिका के लिए ही होती थी नायक प्रायः उर्दू या अंग्रेजी मिली हिंदी बोलता है ।

(11) इतिहास प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भारतीय सिनेमा के इतिहास से आज तक एक भी फ़िल्म ऐसी बनी हो जिसमें किसी मस्जिद के मौलवी या चर्च के फादर को किसी ग़लत कार्य में संलिप्त या धर्मान्तरण को बढ़ावा देते हुए दिखाया/ बताया गया हो ।

(12) ईश्वर में आस्था रखने वाले हर चरित्र के साथ पूरी फ़िल्म में परिहास किया जाता था ।

(13) न्याय के देवता श्री यमराज व कर्म के देवता श्री चित्रगुप्त को उपहास के पात्र के रूप में प्रस्तुत करके उनका उपहास बनाया जाता रहा है ।

हिंदुत्व आज अचानक संकट में नहीं आया है, ये तो उस विशाल वटवृक्ष के समान है, जिसे समाप्त करना आसान नहीं था । अतः अनेकों वर्षों से शनैःशनैः इसकी जड़ों को काटा जा रहा है। विचार करो जिस दिन ये पेड़ कट गया। उस दिन घुट-घुट के मर जाओगे । अतः यदि आप सक्षम हैं तो गलत बातों का त्वरित प्रतिकार करें व उचित प्रत्युतर दें और यदि अकेले न कर सकें तो संगठित होकर करें, परन्तु शांत न बैठें । तनिक सी बात पर अन्य लोगों का मज़हब खतरे में आ जाता है तो *क्या सारे धर्म निरपेक्षता का ठेका मात्र हिन्दू धर्म ने ले रखा है* ?साभार व्हाट्सएप यूजर से।।

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