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- चंडीगढ़ /मुंबई:- 13 नवंबर:- आर के विक्रमा शर्मा/ अरुण कौशिक:— देश भर में हर कोई तानाशाह का नंगा नाच किसी न किसी रूप में किसी न किसी सरकार की अथॉरिटी में, यहां तक कि न्यायपालिका में भी देखने को मिल रहा है!! इसका ताजा उदाहरण इस चीज से स्पष्ट हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की अच्छी तरह से डांट तक की है कि हाईकोर्ट अपनी बुनियादी भूमिका छोड़कर कुछ और तरह के ही फैसले कर के नागरिकों की आजादी और अधिकारों का हनन कर रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट की है टिप्पणी बहुत-बहुत कारगर और कई संदर्भों में उपयोगी देखी जा रही है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के अर्णव जैसे प्रबुद्ध पत्रकार की बेज्जती करने, मानसिक प्रताड़ना करने और उनकी छवि को धूमिल करने के किस्से देश में ही नहीं, विदेशों में भी देखे और सुने गए। जो भारतीय पत्रकारिता इतिहास में कलंक का टीका माने जाएंगे।
- माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में सटीक टिप्पणी की है जिसको प्रबुद्ध नागरिकों ने सही समय पर सही पकड़ करार दिया है।
1 अर्णब कोई आतंकवादी नहीं है, फिर भी गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने उसे घसीटा, बेटे और पत्नी के साथ अभद्रता की।
2इस केस में कस्टडी की कोई ज़रूरत नहीं थी।
3 ये एक “Personal Liberty” (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का मामला है, और इसमें Bombay High Court ने bail न देकर बड़ी गलती की। हम लगातार ऐसे cases देख रहे हैं जब अलग-अलग राज्यों के high courts bail न देकर नागरिकों की Personal Liberty की रक्षा नहीं कर रहे हैं।।
4 High courts “संवैधानिक कोर्ट” होते हैं, पर चिंता की बात है कि एक के बाद एक केस में High Courts ने Personal Liberty को नकारा है, वो नागरिकों को bail नहीं देते। और आज हम देशभर के High Courts को ये संदेश देना चाहते हैं कि अपने विशेषाधिकार का प्रयोग नागरिकों की Personal Liberty की रक्षा में कीजिए।।
5 यदि आज हमने इस केस में हस्तक्षेप नहीं किया तो हम बर्बादी की राह पर चल पड़ेंगे।
6 यदि कोई आर्थिक चिंता से ग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेता है, तो क्या हम उसे “Abetment to suicide” (आत्महत्या के लिए उकसाना) मान लें? आत्महत्या के लिए उकसाने और सीधे प्रेरित करने के साक्ष्य होने चाहिए।
7यदि आपको अर्णब की विचारधारा पसंद नहीं तो उसका चैनल मत देखिये। लेकिन उसे या उसकी विचारधारा को पसंद न करने के कारण आप उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन नहीं कर सकते। सरकारों को criticism बर्दाश्त करने की ताकत होनी चाहिये। सुप्रीमकोर्ट को उसके फ़ैसलों के लिए सोशल मीडिया में गालियाँ पड़ती हैं लेकिन हम विरोध की आवाज़ को सुनते हैं।
सुनवाई के दौरान हरीश साल्वे जी ने महाराष्ट्र ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के ड्राइवर और कंडक्टर द्वारा की गई आत्महत्या का भी जिक्र किया और पूछा कि वो दोनों लिखकर मरे हैं कि सरकार द्वारा सैलरी न देने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, तो क्या अब पुलिस CM उद्धव ठाकरे को कस्टडी में लेगी??
वैसे आज जस्टिस चंद्रचूड़ का जन्मदिन भी है, लेकिन दीपावली की छुटियाँ होने के बावजूद भी उन्हें लगभग पूरा दिन आज काम में बिताना पड़ा।।
पर उन्होंने अपनी sister judge जस्टिस इंदिरा बनर्जी के साथ आज के दिन जो काम किया है, उसके लिए उन्हें पूरे देश से जितना आशीर्वाद मिल रहा है, उतना शायद ही उनके किसी भी जन्मदिन पर उन्हें मिला हो।।
आफ देशप्रेमसे भरे हुये मेसेज या देशहित कि न्युज आफ के पेहचान वाले, रिलेटिव्ह या दोस्त को भेजिये और शांती से क्या होता है देखिये..
निचे दि गई मे से कोई प्रतिक्रिया आफको मिलेगी.. फिर आफ आजमाईये…
1.कुछ भी प्रतिक्रिया न आयेगी
2.कुछ लाईक करेंगे
3. कुछ आगे बढायेंग
4. कुछ ऐसी प्रतिक्रिया देंगें ये मेसेज पोलिटिकल है और मैं पोलिटिकल बाते नहीं पसंत करता.. गाने भेजे जोक भेजे
5. कुछ विरोध प्रकट करेंगे और अपना बयान देंगें.. कुछ ना कुछ विरोधी टिपणी जरूर करेंगें और आफ को प्रतिक्रिया के लिये ऊकसायेंगे..
ऐसे लोगोंको स्वागत किजिये मैं आफका आदर करता हुं और कभी बात की तो जरूर समझाईये एक सुध्रुड लोकशाही और सुध्रुड समाज और सुध्रुड राष्ट्र के लिये देश/ समाज में अपने आसपास हो रही घटनाओं का ज्ञान और ऊसके परिणाम समझानेकी कोशिश जरूर करे.. लोकशाही मे हर नागरिक का ये महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है।