चंडीगढ़: – 9 नवंबर: आर के विक्रम शर्मा / एनके धीमान: – दीपावली को महज ही चंद रोज का इंतजार है। और दीपावली के आगे पीछे के त्योहार शुरू हो चुके हैं। जिसमें मुख्यता धनतेरस दीपावली से पहले धन्वंतरी जयंती, छोटी दीपावली, कमला जयंती और प्रदोष व्रत, शिवरात्रि व्रत मासिक आदि का आयोजन होता है।
और दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा, विश्वकर्मा दिवस, महावीर स्वामी निर्वाण दिवस, वृश्चिक सक्रांति, देव कार्य अमावस स्नान इत्यादि दान आदि भाई दूज, चित्रगुप्त पूजा, यमुना स्नान, डाला छठ व्रत आरंभ, दुर्गा गणपति व्रत आदि आदि का भव्य आयोजन होता है।
लेकिन यह व्रत, त्यौहार व त्योहार केवल उत्साह पूर्वक आयोजित किए जा सकते हैं। जब जेब में दमड़ी हो, बिनु मैया कछु नहीं भाय ।। कुम्हार लोग इस बार बेहद प्रसन्न चित्त थे कि कोरोनावायरस महामारी के कारण बालनीज उत्पाद की दीपावली पर भारी मांग शून्य हो गई है … उनके चेहरों पर दमक और चमक थी कि इस बार वह भी मिट्टी के अपने सामान को यथोचित मूल्य पर बेचकर पिछले कर्ज में डूबे रहे। एगा मुक्ति प्राप्त होगी। घर में धूमधाम खुशी से दीपावली मनाएंगे। लेकिन यह खुशियां धरी धराई रह गईं हैं। क्योंकि फेस्ट व खुले बाजार लगाने पर प्रशासनिक मजबूरी व को विभाजित -19 के कारण मजबूरन सभी जानते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर सरकारी तंत्र किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में खुले मैदानों में कुम्हर अपना सामान कैसे बेचेंगे। यह बहुत ही दुविधा का प्रश्न बन गया है।कुम्हर हाथ रोक कर ही सामान विशेष कर दीये, चौख दीया, हटड़ी, लक्ष्मी गणेश जी की मूर्तियां व मिट्टी के बंधनवार, कैंडल स्टैंड इत्यादि बनाने से इनकार नहीं कर रहे हैं। यानी कि कुम्हरों की आशाओं को जहां कोरोनावायरस ने नए पंख लगाए थे। और बालनीस उत्पाद को अपाहिज किया था। वहीं, कोविद -19 के कुरूपों के कारण निराशाओं का अंबार लग गया है।
अल्फा न्यूज़ इंडिया जन-जन से यही गुहार करती है कि अपने देश के कुम्हरों का जीवन स्तर और व्यवसाय को ऊपर उठाने के लिए उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के उत्पाद जरूर जरूर चाहते हैं। और उनके चेहरे पर नई खुशियों का अंबार लगता है। इसलिए यह भी दिल खोल के दीपों का त्यौहार मनाऐं ।।
कोविड 19 ने हमें सजग कर दिया है कि हम अब पर्यावरण के चितेरे बनकर इसकी स्वच्छता और संरक्षण का ध्यान रखें। ताकि हम सब स्वस्थ और दीर्घायु हो सकें। इसके लिए पटाखें, फुलझड़ियां, बम और मोमबत्तियां जलाने से पूर्णतया परहेज करें।।
कुल मिलाकर देखा जाए तो कार्तिक मास हर रोज कई व्रत-त्योहारों के धर्म आयोजन की छटा बिखेरता है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा, विश्वकर्मा पूजा, भाई दूज, छठ पूजा, दुर्गा अष्टमी व्रत और देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत, तुलसी विवाह, लिंगर्मास समापन, बैकुंठ चतुर्दशी पूर्णिमा व्रत व जैन धर्म की चौमासी चौदस, कार्तिक पूर्णिमा और स्नान के दिन। स्नान करें। , और भीष्म पंचक पद के साथ रोहिणी का व्रत धूमधाम से आयोजित किया जाएगा। कई पौराणिक व ऐतिहासिक धर्म भगवत भव्य आयोजनों के चलते भी कुम्हरों के घरों में अगर दीपावली के समागम के चलते भी अंधरा छाया रहता है। तो इसके गुनाहगार हम सब हैं। हम सब आत्म केंद्रित न होकर सभी काल की भावना के तहत परोपकारी बन जाते हैं। और सबको बेहतरीन जीवन जीने के साथ-साथ खुशियों को मनाने की सबब वेला प्रदान करें ।।