चंडीगढ़:-30 अक्टूबर:- अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क:–आदि कवि भगवान वाल्मीकि जी के प्रकट दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें देते हुए समाज सेवक व धर्म आस्थावान पंडित राम कृष्ण शर्मा ने कहा कि बाल्मीकि जी के उपदेश और शिक्षाएं आज के संदर्भ में खूब प्रासंगिक हैं।
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानि कि शरद पूर्णिमा को आदि काव्य रामायण के रचयिता और संस्कृत भाषा के परम ज्ञानी महर्षि वाल्मीकि का जन्म ऋषि कश्यप और माता अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी माता चर्षणी के घर हुआ था।
*जब महर्षि वाल्मीकि ने रचा संस्कृत का पहला श्लोक* — महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत साहित्य के पहले श्लोक की रचना की थी. संस्कृत साहित्य का यह पहला श्लोक रामायाण का भी पहला श्लोक बना. ज़ाहिर है रामायण संस्कृत का पहला महाकाव्य है. हालांकि इस पहले श्लोक में श्राप दिया गया था. इस श्राप के पीछे एक रोचक कहानी है. दरअसल, एक दिन वाल्मीकि स्नान के लिए गंगा नदी को जा रहे थे. रास्ते में उन्हें तमसा नदी दिखी. उस नदी के स्वच्छ जल को देखकर उन्होंने वहां स्नान करने की सोची.
*महाकवि का अवतरण –* तभी उन्होंने प्रणय-क्रिया में लीन क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा. प्रसन्न पक्षी युगल को देखकर वाल्मीकि ऋषि को भी हर्ष हुआ. तभी अचानक कहीं से एक बाण आकर नर पक्षी को लग गया. नर पक्षी तड़पते हुए वृक्ष से गिर गया. मादा पक्षी इस शोक से व्याकुल होकर विलाप करने लगी. ऋषि वाल्मीकि यह दृश्य देखकर हैरान हो जाते हैं. तभी उस स्थान पर वह बहेलिया दौड़ते हुए आता है, जिसने पक्षी पर बाण चलाया था. इस दुखद घटना से क्षुब्ध होकर वाल्मीकि के मुख से अनायास ही बहेलिए के लिए एक श्राप निकल जाता है:
*मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।*
*यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥*
अर्थात्: हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक शांति न मिले, क्योकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी ।