चंडीगढ़: 15 अक्टूबर:- आर के विक्रमा शर्मा:—-कानून सबके लिए एक जैसा होता है। कानून अपना काम दूरदर्शिता और प्रमाणों के आधार पर समानता और सर्वमान्य व निष्पक्ष निर्लेपता से करता है। यह भी कहा जाता है कि कानून इंसानों के लिए भी उतना ही कारगर और उपयोगी है जितना जानवरों के लिए होता है। इसीलिए अक्सर खबरों में पढ़ने को और टीवी माध्यमों से देखने, सुनने को मिलता है कि आमुक पक्षी या जानवर को उसकी उद्दंडता के लिए या किसी को हानि पहुंचाए जाने के दोष में सजा सुनाई गई है।
सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ सर्वोच्च और योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी का मत है कि पाप, ज्यादतियां व अपराध, जुर्म यह सब सहना भी अपने आप में एक जुर्म है। हमें जुर्म का विरोध करना चाहिए और यथाशक्ति यथासंभव पापी को, जुल्मी को सजा जरूर देनी चाहिए। ताकि यही अपराध यही ज्यादतियों का जुल्म वह किसी और के साथ ना कर सके। भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत में पापियों को यही सजा देने का उत्कृष्ट उदाहरण रचा है।
कानून इंसान और जानवरों के लिए तो एक जैसा हो सकता है। लेकिन कानून दानवों के लिए होता ही नहीं है। इसीलिए दानवीय प्रवृत्ति के लोगों को उनके किए की सजा जरूर देनी चाहिए। कानून इंसानों के लिए होता है, ना कि दानवों के लिए होता है।√ ऐसा देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है। एक टीवी चैनल को एक साक्षात्कार में मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि अगर आपको कोई एक तमाचा मुंह पर जड़ता है। तो पलट कर आप अपनी क्षमता मुताबिक उस जुल्म करने वाले को उसके किए की सजा जरूर दो। पलट कर उसके मुंह पर घूसा दे मारो। और यह बात आज अक्षरत भगवान श्री कृष्ण के उपदेश का स्मरण और बल दर्शाती है।। देश में गुंडा तत्व असमाजिक तत्व हिंसा और हर प्रकार का पापाचार फैलाने में अपनी मर्दानगी और अपनी समर्थ्य शक्ति और अधिकार समझ रहे हैं।। ऐसे में पब्लिक को एकजुट होकर हर प्रकार के अपराधी को दंड देना चाहिए। *लेकिन अगर हर कोई खुद ही दंड देने का कार्य करेगा! तो कानून और कानून के रक्षक व्यर्थ में बैठे रह जाएंगे ! समाज में हर तरह की प्रवृत्तिदक्ष हैं। जहां हमें कानून की पालना और सम्मान करना चाहिए। वहीं, कानून को भी पीड़ित प्रभावित के साथ तुरंत अविलंब न्याय मुहैया करवाना चाहिए। नेपाल को को न्याय करने में कुंभकरण की नींद का त्याग करना ही होगा तभी कानून की पालना हो सकेगी। कानून का सम्मान समाज में बना रहेगा। और जुल्मों सितम करने वालों के हौसले पस्त होंगे। योगी आदित्यनाथ ने यह कदापि नहीं कहा है कि कानून अपने हाथ में लो। लेकिन अगर आप पर कोई हिंसक वृत्ति का जुल्म करने वाला हमला करता है। तो आप अपनी रक्षा में उसको उसी की भाषा में उसी के लहजे में उत्तर जरूर दे सकते हैं। और अपने प्राणों की रक्षा कर सकते हैं। यह आपके अपने जीवन जीने के अधिकार का सम्मान होगा। क्योंकि वहां उस मौके पर कानून और कानून के रक्षक आपके लिए ना पहुंच पाएंगे और ना ही बुनियादी सुविधा, सुरक्षा व संरक्षण आपको दे पाएंगे। आज युवा समाज चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल से है, वह पूरी तरह से योगी नाथ के इस कथन का भरपूर समर्थन और प्रशंसा करते हैं। आमुक बुद्धिजीवी ने तो यहां तक कहा कि बॉर्डर पर, सीमा रेखा पर हमारे जवान सीने पर गोलियां खाते हैं। और दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय दिल्ली की ओर ताकते हैं कि उन्हें कानून के मुताबिक जवाब देना है, तो कानूनन बदले की कार्रवाई की इजाजत लेनी पड़ेगी। और परिणाम स्वरूप अगले दिन उस सैनिक का शव उसके घर पहुंचा दिया जाता है। जरूरत है तो मौके पर वहीं दुश्मन को ललकार कर फटकार कर उसे मुंह मोड़ जवाब दें । जुर्म की श्रेणी मुताबिक जुल्मी या पापी का संहार भी करना कानून की ही पालना और सम्मान जैसा है।।
कड़वा सत्य तो यह है कि कानून की ओर ताकते ताकते आज समाज अपाहिज होकर रह गया है। जिस का सिक्का चलता है, जोर चलता है। वही उठकर गरीब दयनीय असमर्थ परिवार की बेटियों को बहुओं को माताओं को अपनी हवस अपनी वासना का खुलेआम सामूहिक तौर पर शिकार बना रहा है। और कानून एड़ियां रगड़ते हुए बरसों बाद दो शब्द कह पाता है की परमाणु के अभाव में आमुक आरोपी को बरी किया जाता है। यह भारत के कानूनी पक्ष का सोचनीय पहलू है।
समय की जोरदार मांग है कि बद्तर हालात पर काबू पाने के लिए कानून का दरवाजा खटखटाने की बजाए और वर्दियों पर निर्भर रहने की बजाए अब खुद शस्त्र उठाना होगा, पाप जुल्म को मिटाना होगा। पीरु प्रवृत्ति का त्याग करते हुए कानून के प्रसव को कायम रखने के लिए हमें अपनी पुलिस व्यवस्था को हर संभव मदद देनी ही होगी। और अगर हम अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए, एकजुटता का प्रमाण पेश करते हुए पुलिस के साथ कंधे से कंधा मिलायेंगे। तो वह दिन दूर नहीं कि इस धरती से जुल्मों सितम की आंधी थम ही नहीं जाएगी, बल्कि समाप्त ही हो जाएगी।।