मानव और मानवीय अविष्कारों से दूर क्यों है अजेय कैलाश पर्वत

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चंडीगढ़: 30 सितंबर: आरके विक्रमा शर्मा प्रस्तोता : – हिमालय पर्वत का ताज कैलाश पर्वत को कहा जाता है क्योंकि यह पर्वत आज तक मानव और मानव अधिकारों से उसके वैज्ञानिक यंत्रों मंत्रों तंत्रों से परे है हिंदू धर्म संस्कृति और पौराणिक प्राचीनतम शास्त्रों में सृष्टि की रचना है। शिव शक्ति का परम अजयार और अद्भुत रहस्यमई भगवान शंकर का घर कैलाश पर्वत को माना जाता है। कैलाश पर्वत हमेशा बर्फ से ढका रहता है। और सूर्य की केवल एक किरण से ही हिमालय का यह वाणी कहा जाने वाला कैलाश पर्वत चमक उठता है।

🕉️ हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन इसमें सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग चढ़कर विजय प्राप्त कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई चढ़ाई नहीं मिली, जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट पर है। 66 लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर है। यह अब तक रहस्य ही बना हुआ है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही रेडियोएक्टिव भी है।

कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना ​​है कि कैलाश पर्वत पर शिव जी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित मनुष्य ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश पर्वत पर चढ़ सकता है।

ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना अर्थात् मृत्यु को आमन्त्रण देना है, इसीलिए कोई भी मानव आज तक कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए मिला है। कुछ लोग एक तिब्बती बौद्ध गुरु के द्वारा कैलाश चढने की बात करते हैं लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है!

सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पर्वत की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं है, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। घुड़सवार कैलाश को “शिव पिरामिड” के नाम से भी जाना जाता है।

जो भी इस पर्वत को चढ़ने के लिए निकला, या फिर मारा गया, या बिना चढ़ाई के वापस लौट आया।

सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ घुड़सवार कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा: ‘कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भैंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की लाशें खिंचने लगीं, और जीभ कस गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला।

“कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं:” जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता है, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती है। और हर बार मुझे उदय शिविर लौटना पड़ता है। “चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। लेकिन इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।कहते – जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वह आगे नहीं चढ़ पाता है, उसका दिल परिवर्तन हो जाता है। यहां की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 सप्ताह में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरिंग लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने वाला लगता है। कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं है!

29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। इस तरह की मुश्किल चढ़ें चढ़ने में बड़े-से-बड़े पर्वतारोही भीने टेक दे। हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ता में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं। लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना चल जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं की गई। साभार व्हाट्सएप यूजर

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