कर्म ही भविष्य में फल की प्राप्ति करते निर्धारित

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चंडीगढ़ : 09/08/2020:- आरके शर्मा विक्रमा/ करण शर्मा प्रस्तुति:—- अंतिम *सांस* गिन रहे *जटायु* ने कहा कि मुझे पता था कि मैं *रावण* से नही *जीत* सकता लेकिन तो भी मैं *लड़ा* ..यदि मैं *नही* *लड़ता* तो आने वाली *पीढियां* मुझे *कायर* कहती

जब *रावण* ने *जटायु* के *दोनों* *पंख* काट डाले… तो *काल* आया और जैसे ही *काल* आया …
तो *गिद्धराज* *जटायु* ने *मौत* को *ललकार* कहा, —

” *खबरदार* ! ऐ *मृत्यु* ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना… मैं *मृत्यु* को *स्वीकार* तो करूँगा… लेकिन तू मुझे तब तक नहीं *छू* सकता… जब तक मैं *सीता* जी की *सुधि* प्रभु ” *श्रीराम* ” को नहीं सुना देता…!

*मौत* उन्हें *छू* नहीं पा रही है… *काँप* रही है खड़ी हो कर…
*मौत* तब तक खड़ी रही, *काँपती* रही… यही इच्छा मृत्यु का वरदान *जटायु* को मिला।

किन्तु *महाभारत* के *भीष्म* *पितामह* कई दिनों तक बाणों की *शय्या* पर लेट करके *मौत* का *इंतजार* करते रहे… *आँखों* में *आँसू* हैं … रो रहे हैं… *भगवान* मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं…!
कितना *अलौकिक* है यह दृश्य … *रामायण* मे *जटायु* भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* पर लेटे हैं…
प्रभु ” *श्रीराम* ” *रो* रहे हैं और जटायु *हँस* रहे हैं…
वहाँ *महाभारत* में *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं और *भगवान* ” *श्रीकृष्ण* ” हँस रहे हैं… *भिन्नता* *प्रतीत* हो रही है कि नहीं… *?*

अंत समय में *जटायु* को प्रभु ” *श्रीराम* ” की गोद की *शय्या* मिली… लेकिन *भीष्म* *पितामह* को मरते समय *बाण* की *शय्या* मिली….!
*जटायु* अपने *कर्म* के *बल* पर अंत समय में भगवान की *गोद* रूपी *शय्या* में प्राण *त्याग* रहा है….

प्रभु ” *श्रीराम* ” की *शरण* में….. और *बाणों* पर लेटे लेटे *भीष्म* *पितामह* *रो* रहे हैं….
ऐसा *अंतर* क्यों?…

ऐसा *अंतर* इसलिए है कि भरे दरबार में *भीष्म* *पितामह* ने सामर्थ्यवान होते हुए भी *द्रौपदी* की इज्जत को *लुटते* हुए देखा था… *विरोध* नहीं कर पाये थे …! ज्ञातव्य है कि उस कालखण्ड में भीष्म पितामह से टक्कर लेने का साहस किसी में नहीं था ।
*दुःशासन* को ललकार देते… *दुर्योधन* को ललकार देते… लेकिन *द्रौपदी* *रोती* रही… *बिलखती* रही… *चीखती* रही… *चिल्लाती* रही… लेकिन *भीष्म* *पितामह* सिर *झुकाये* बैठे रहे… *नारी* की *रक्षा* नहीं कर पाये…!

उसका *परिणाम* यह निकला कि *इच्छा* *मृत्यु* का *वरदान* पाने पर भी *बाणों* की *शय्या* मिली और ….
*जटायु* ने *नारी* का *सम्मान* किया…
अपने *प्राणों* की *आहुति* दे दी… तो मरते समय भगवान ” *श्रीराम* ” की गोद की शय्या मिली…!

जो दूसरों के साथ *गलत* होते देखकर भी आंखें *मूंद* लेते हैं … उनकी गति *भीष्म* जैसी होती है …
जो अपना *परिणाम* जानते हुए भी…औरों के लिए *संघर्ष* करते है, उसका माहात्म्य *जटायु* जैसा *कीर्तिवान* होता है।

सदैव *गलत* का *विरोध* जरूर करना चाहिए। ” *सत्य* परेशान जरूर होता है, पर *पराजित* नहीं।
🙏🌹 साभार व्हाट्सएप यूजर से🌹🙏

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