बंसल की मौत के जिम्मेदार लोगों पर दर्ज हो मामला

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चंडीगढ़: 03 अगस्त:– अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क:— क्या इंसान की ज़िंदगी की कोई कीमत नही है।
ऐसा इसलिए पूछ रही हूँ क्योंकि आज हमारे एक साथी श्री जशवंत बंसल जी (नव दुनिया समाचार पत्र के कर्मचारी) की कोरोना के कारण मौत हो गयी। इस बात का बहुत अफसोस हुआ लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और दुख की इस घड़ी में उनके परिवार वालो को संयम दे। दरअसल जबसे उनकी मौत की खबर सुनी है तो बस एक ही बात जहन में आ रही है कि क्या उनकी मौत का जिम्मेदार सिर्फ कोरोना ही है, क्या ऐसा हो सकता था कि वो बच जाते।। आखिर उनकी मौत का जिम्मेदार है कौन? सिर्फ कोरोना या फिर अस्पताल प्रशासन या फिर वो संस्था जहाँ वो अपनी जान जोखिम में डाल कर भी अपनी पारिवारिक अजीवका चलाने के लिए काम करते थे।
तो मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि क्या आज वो हमारे बीच हो सकते थे?? इसके 2 तर्क हैं ….
पहला प्रशासन ……
यह कि एक ही संस्थान जहाँ एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद भी संस्थान को सील नही किया गया और नही उसके बाकी के कर्मचारियों को क्वारंटाइन किया गया इन सब के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए प्रशासन को जिसने इतनी बड़ी घटना को अनदेखा कर दिया
दूसरा संस्था ……
समाचार पत्र के प्रबंधन जिसने समय की विपरीतता को अनदेखा किया और अपने सभी कर्मचारियों की जान के साथ खिलवाड़ करके अपनी कमाई को जारी रखा। अब क्या समाचार पत्र का प्रबंधन उनके परिवार का भरण पोषण करेगा। किसी प्रबंधन का अपने कर्मचारियों के प्रति इस प्रकार का व्यवहार बहुत ही निंदनीय है जिसने सिर्फ अपनी कमाई के बारे में सोचा न कि उनके बारे में जिनकी वजह से वो कमाई करता है।
शायद वो बच सकते थे अगर उनकी संस्था ने उन्हें कोरोना काल में, लोकडॉउन होने के बावजूद भी जान बूझ कर मौत के मुंह मे न भेजा होता तो,
अब जब हम सब ये जानते है कि पूरी दुनिया मे कोरोना की क्या स्थिति है उसके बाद भी वो चंद पैसो के लिए उन जगहों पर जाते थे जहाँ कोरोना की भयावह स्तिथीं थी मसलन नगर निगम ऑफिस और कई ऐसी सरकारी संस्था जहा कोरोना के कई मामले थे।
इसके बाद भी जब नव दुनिया के भोपाल आफिस में कोरोना में कई मामले सामने आए तब भी वहाँ के कर्मचारियों को काम करने के लिए बुलाया जाता रहा और न आने पर नॉकरी से निकालने की धमकी दी जाने लगी। बेचारे बंसल जी जैसे कई लोग इस महामारी में अपनी नॉकरी जाने के डर से लगातार आफिस आते रहे।
क्या ऐसी स्थिति में संस्था की कोई जवाबदारी नही थी कि वो अपने कर्मचारियों की सुरक्षा का धयान रखें।
ख़ैर से जो हुआ उसे बदला तो नही जा सकता लेकिन फिर भी आज ये सब इसलिए लिख रही हुँ ताकि इन बड़ी बड़ी कंपनियों को इस बात का एहसास हो कि उन्हे चन्द रुपए देकर इंसान की ज़िंदगी खरीदने का कोई अधिकार नही हैं।
आप सबसे अनुरोध है कि अगर आप मेरी बात से सहमत है तो कृपया करके जो बंसल जी के साथ हुआ उसका विरोध करें ताकि हमारे और साथी जो इस महामारी में अपनी जान जोखिम में डाल कर अपनी गृहस्थी चलाने के लिए मालिकों की सही गलत हर बात मान रहे है वो सुरक्षित हो सकें।
मैं ये नही बोल रही कि जब तक कोरोना है हमे काम नही करना चाहिए बस मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि मालिकों को काम के दौरान अपने कर्मचारियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि अगर हम जैसे छोटे कर्मचारी अपने मालिकों के अधीन है तो कही न कही ये बड़ी बड़ी कंपनियां भी हम जैसे कर्मचारियों के खून पसीने से ही चल रही हैं। हम अपनी कंपनियों को अपना खून पसीना तो देगे लेकिन अपनी और अपने प्रियजनों की ज़िन्दगी नहीं।।।
दोस्तों कृपया इसे एक मुहीम बनाये।।
शायद मित्रता दिवस के अवसर पर यही स्वर्गीय श्री जशवंत बंसल जी को हम सबकी ओर से सही श्रधांजलि होगी।।।
🙏🙏 साभार व्हाट्सएप यूजर से।।नव दूनिया समाचार पत्र ।

 

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