दमदार धमाके के साथ बमनुमा आकार का धातु टुकड़ा गिरने से आसपास के क्षेत्रों में फैली दहशत

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चंडीगढ़/जालोर : 20 जून : अल्फा न्यूज इंडिया डेस्क:– जिले के सांचोर शहर में शुक्रवार सुबह करीब सवा 6 बजे आसमान से तेज धमाके के साथ बमनुमा आकार का (धातु टुकड़ा) हिस्सा गिरने से आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. आसमान से गिरी वस्तु की आवाज इतनी तेज थी कि करीब 2 किलोमीटर के क्षेत्र में धमाका सुनाई दिया. आसमान से गिरा यह पिंड तीन घंटे बाद भी हीटिंग दे रहा था. इसके गिरने से जमीन में एक फीट गहरा गड्ढा बना हुआ था. धमाके की आवाज 2 किमी दूर तक सुनाई दी. यह एक उल्का पिंड था जिसको जब एक मशीन से जांचा गया तो सामने आया कि इसकी कीमत करोड़ों में हो सकती है.

राजस्थान में जालोर जिले के सांचौर चरखी गायत्री कॉलेज के पास गिरे धातु केे टुकड़े की सूचना पर शुक्रवार को उपखंड अधिकारी भूपेंद्र यादव मौके पर पहुंचे थे और आसमान से गिरी धातु को देखा. इस दौरान धातु के बारे में एक्सपर्ट टीम को सूचना दी गई. ऐसे में एक्सपर्ट टीम ने मौके पर पहुंचकर धातु को कब्जे में लेकर जांच की गई जिसमें आसमान से गिरी धातु का वजन 2 किलो 788 ग्राम निकला.

इस धातु की जब कम्प्यूटर और मशीन से जांच की गई तो उसकी सतह में धातु की मात्रा प्लेटीनम 0.05 ग्राम, नायोबियम 0.01 ग्राम, जर्मेनियम 0.02 ग्राम, आयरन 85.86 ग्राम, कैडमियम की मात्रा 0.01 ग्राम, निकिल 10.23 ग्राम पाई गई है जिसका कुल वजन 2.788 किलोग्राम है.

इस बारे में कम्प्यूटर टेस्टिंग के डायरेक्टर शैतान सिंह कारोला का कहना है कि उस उल्का पिंड की जांच में सतह से 5-6 धातुओं के बारे में पता चला है जिसमें प्लेटिनम सबसे महंगी है. प्लेटिनम का भाव 5 से 6 हजार रुपये प्रतिग्राम होता है. यदि उसकी जांच करने पर अंदर भी इसी तरह का मटेरियल निकलता है तो इसकी कीमत करोड़ों रुपये में हो सकती है.

उल्लेखनीय है कि आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं, उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में टूटते हुए तारे कहते हैं. उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं.

प्रत्येक रात को उल्काएं अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या बहुत कम होती है. वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये पिंड ही हैं.साभार महानाद।।

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