चंडीगढ़ : 31मई:–अल्फा न्यूज़ इंडिया डेस्क:— हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री श्री चंद्रमोहन ने केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण से मांग की है कि केन्द्र सरकार द्वारा जीएसटी के रूप में केन्द्र सरकार द्वारा एकत्रित की जाने वाली 50 प्रतिशत राशि को माफ किया जाए ताकि छोटे दुकानदारों, व्यापारियों और उद्योगपतियों को कोरोना रूपी राक्षस द्वारा उत्पन्न की गई त्रासदी के समय में राहत प्रदान की जा सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने मांग की है कि जीएसटी लागू करने की प्रारम्भिक सीमा को भी 20 लाख से बढ़ाकर 50 लाख रुपए वार्षिक किया जाए। श्री चन्द्र मोहन ने केन्द्रीय वित्त मंत्री से मांग की है कि जीएसटी अदा करने की एकमुश्त राशि अदा करने की सीमा 1.50 लाख रुपए तक की सीमा को भी बढ़ा कर 2 लाख रुपए वार्षिक तक किया जाए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को कोरोनावायरस रुपी महामारी के इस संकट के समय में लोगों की पीड़ा और वेदनाओं को कम करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में छोटे दुकानदारों, व्यापारियों और लघु एवं सूक्ष्म दर्जे के उद्योगपतियों जिनका वार्षिक कारोबार 20 लाख रुपए से लेकर 1.50 करोड़ रुपए वार्षिक है उनको जीएसटी की एक प्रतिशत की दर से एकमुश्त भुगतान करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने मांग की है कि जीएसटी लागू करने की वार्षिक कारोबार की सीमा 20 लाख से बढ़ाकर 50 लाख वार्षिक किया जाए । इसी प्रकार एक मुश्त अदायगी की सीमा को बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए वार्षिक किया जाए। उन्होंने मांग की है कि एक मुश्त अदायगी के लिए निर्धारित जीएसटी की दर को एक प्रतिशत से कम करके 0.5 प्रतिशत किया जाए। श्री चन्द्र मोहन ने कहा कि लाकडाउन के परिणाम स्वरूप छोटे दुकानदारों और व्यापारियों सहित मध्यम वर्ग के लोगों को भारी नुक़सान का सामना करना पड़ा है और केन्द्र सरकार का यह दायित्व है कि वह ऐसी विकट परिस्थितियों में प्रभावित लोगों की भरपूर सहायता करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन असहाय लोगों की मदद देने के लिए ऋण की नहीं अपितु नकद राशि प्रदान करने की जरूरत है। इसी प्रकार से उधोगों को पुनर्जीवित करने के लिए विशेष पैकेज देने की जरूरत है, जिसमें बिजली पानी माफी के साथ साथ नगद सहायता प्रदान करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को फांस देश का अनुशरण करना चाहिए जहां केवल कार उधोग को बचाने के लिए 8 अरब यूरो के पैकेज की घोषणा की गई है। इसी प्रकार से जर्मनी में श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए 4.50 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके विपरित भारत में लगभग 8 करोड़ श्रमिकों के लिए एक महीने में पांच किलो गेहूं और चावल तथा एक किलोग्राम काले चने प्रति श्रमिक प्रति महीना देने का प्रावधान किया गया है ताकि वे अपनी भूख रुपी पिपासा को शांत कर सकें। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपनी भूख मिटाने के लिए औसतन लगभग 7.50 रूपए मूल्य का अनाज तीन महीने तक मिलेगा और इसी में तीन टाईम के खाने का काम चलाना होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण के पुरोधा इन श्रमिकों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है । उनकी बेबसी और लाचारी का लाभ उठा कर उनको सड़कों और रेलवे ट्रैक तथा तपती दोपहरी में नंगे पांव मरने के लिए छोड़ दिया गया। देश के विभिन्न राज्यों से इन श्रमिकों की हृदय विदारक घटनाएं सामने आ रही है ,जो एक लोकतांत्रिक देश में विचलित करने वाली है।ll