आरज़ू है रब से, ना जाने कब से

Loading

रात अंधेरी में
याद तेरी में
रुह मेरी में
इंतजाम देरी में
ख्वाबों की ढेरी में
बेचैनी की बेरी में
कविता की कावेरी में
संधली सवेरी में
हुस्न की हेराफेरी में
इश्क की इंतहा में
रजामंदी की राहों में
सब्र आर है न पार
मुहब्बत बेशुमार है
रुठ न परवाने से
राज दीवाने से
आशिक अनजाने से
इक बदन दो जान से
अनकहे अफसाने से
आंसुओ के बहने से
तनहाई के तरानों से
ग़म के घरानों से
परायों की पहचानों से
टीसते जख्मों की ताव से
अरमानों की आव से
आस की डोलती नाव से
हाल पूछा होता जनाव से
सुरमई चाह के चाव से
बहकी वफा के भाव से
बेवफाई के चनाब से
सोहनी के महिवाल से
हीर की रहनुमाई से
बेदर्दी की रुसवाई से
सिसकते सितम से
*तू मुझसे *मैं तुझसे
जोदम हो अब जाएं
बेख़ौफ़ हम इन सब से
आरजू है अपनी रब से।।।
***आरके विक्रमा शर्मा✓
पीजीडीपीआर!!
📱9872886540🌹

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

159195

+

Visitors