चंडीगढ़ : 25 मई:- आरके शर्मा विक्रमा/हरीश शर्मा मिंटू :-– कुम्हार जाति के लोगों को साल भर गर्मी का सीजन आने का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहता है।। और इन गर्मी के चंद महीनों में वह साल भर की कमाई के लिए थोड़ा-बहुत गुजर-बसर इंतजाम कर ही लेता है। लेकिन इस मर्तबा कोरोनावायरस की महामारी ने कुम्हार की कमाई पर भी दोहरा प्रहार किया है। लााक डॉउन के चलते यह व्यवसाय पूरी तरह से अपनी कमाई का कारवां गंवा चुका है।। और जब कमाई का जरिया शुरू हुआ तो इस प्रजाति में इस व्यवसाय से जुड़े एक विशेष संप्रदाय धर्म के कारण प्रभाव होना स्वाभाविक है। खरीदार इस धर्म के लोगों द्वारा थूकने का एक नया प्रचलन शुरू करने के चलते इस व्यवसाय पर भी लोगों की ओर से उदासीनता देखी जा रही है। लोगों में बहुत डर है कि कुम्हार विक्रेता ना जाने क्या पता उसी धर्म विशेष से संबंधित हो। दूसरी ओर कड़ाके की गर्मी पड़ने के चलते भी लोग घरों से बाहर निकलने का जोखिम उठाने से बच रहे हैं। उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग के कारण भी मुश्किलात पेश आ रही हैं। घड़ा सुराही गमले और सजावटी मूर्तियों में झरने टेराकोटा के उत्पाद कहीं तो लोगों को अपनी ओर बखूबी आकर्षित करते थे। लेकिन इस मर्तबा ग्राहकों में उनके प्रति उदासीनता देखी जा रही है। उपभोक्ताओं का शिकवा भी सही लगता है कि जो भी ग्राहक कुछ खरीदारी करने का साहस जुटाकर कुमाहर के पास जाता है। तो वह उसकी गाड़ी देखकर रेट को 3 गुना 4 गुना बढ़ा देते हैं। नतीजे ग्राहक मन में सोच कर बिना खरीदारी किए अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाता है। कुम्हार दुहाई देते हैं टेराकोटा का यह सामान कोलकाता से मंगवाया जाता है। जिसकी ट्रांसपोर्टेशन काफी महंगी पड़ती है। जिस जमीन पर बैठकर यह व्यवसाय किया जा रहा है। उसका भी भारी भाड़ा दिया जाता है। अल्फा न्यूज़ इंडिया की प्रशासन से गुजारिश है कि इन लोगों को सरकार के किसी खाली जगह में उचित किराया लेकर जगह मुहैया करवाई जाए। ताकि ज्यादा भाड़ा देने की मजबूरी से पीछा छूटे। दुकानदार और खरीदार दोनों अपनी अपनी जगह मजबूर हैं। लेकिन अगर कुम्हर उत्पाद का सही रेट ही लगाएं और अपनी मजबूरियां एक तरफ रखें। तो खरीदार खरीदारी कर सकता है। और जरूरत अनुसार खरीदारी करेगा भी।। क्योंकि जिस चीज की जरूरत है। वह हर हाल में खरीदी ही जानी है। भले ही यहां से नहीं, तो वहां से ही खरीदी जाएगी। और इसी मजबूरी का कुम्हार दुकानदार भी बखूबी फायदा उठाते हैं।।।