पितृ देवो भव: पिता समग्र चराचर जीवन की धूरी : पंडित कृष्ण मेहता

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चंडीगढ़:-21 नवंबर:-आरके विक्रमा शर्मा/करण शर्मा प्रस्तुति:—हमारे भारतीय संस्कृति में पिता का स्थान सर्वोच्च माना गया है । सनातन धर्म में पिता को भगवान माना है ।
।। पितृ देवो भवः ।।
इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि पिता भगवान समान है| हमारा आत्मिक विकास वह आयुष्य का विकास पिता करता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता व चंद्र को माता कहा है । जिस प्रकार सूर्य उदय से दिन की शुरुआत होती है , वैसे ही पिता के कारण हमारे मन का उदय होता है ।

बच्चे का आत्मविश्वास सूर्य और पिता के साथ ओर संबंधों पर निर्भर करता है । और पिता का भाव नवम और दशम भाव से देखा जाता है , व धर्म व कर्म स्थान से भी देखा जाता है। इसलिए पिता के आयुष्य व प्रशस्ति के बारे में नवम व दशम भाव का विचार करना चाहिए । सूर्य जिस ग्रह के सानिध्य में होगा , उसी प्रभाव में वह होगा, वही पिता का कारक होगा । जिन बच्चों का सूर्य ग्रह कमजोर है उनके पिता को बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहिए । बच्चा जितना अपने पिता के साथ रहेगा उसका आत्मविश्वास उतना ज्यादा बढ़ेगा , क्योंकि बच्चा अपने पिता का प्रतिबिंब होता है ।

ज्योतिष शास्त्र में महर्षि पाराशर ने 16 प्रकार के श्राप से संतान हानि बताई है । यह संतान उत्पत्ति में हानि पहुंचाती है । जो लोग अपने पिता को कष्ट देते हैं , उनका अपमान करते हैं वह उनकी बात नहीं सुनते । ऐसे लोगों को सूर्य का अशुभ प्रभाव मिलता है। इससे उनके मान सम्मान में हानि होती है, उस व्यक्ति को अपने कारोबार या नौकरी में हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है । ऐसे लोगों को बचपन से ही आंखों में तकलीफ रहती है ।

जिन बच्चों का सूर्य कमजोर होता है उनके पिता को सेहत और पैसों से जुड़ी समस्याएं होती है। वह बच्चे आज्ञाकारी हो तो भी पिता से दूर ही रहते हैं । अगर ऐसा हो रहा है तो आपको सूर्य को हर रोज जल चढ़ाना चाहिए , अपने घर में लाल रंग के पौधे लगाए , पर पौधा कैक्टस प्रजाति का नहीं होना चाहिए ।

अगर बच्चे की कुंडली में सूर्य और शनि एक साथ है तो उसके पिता को हमेशा कष्ट रहेगा । इसके लिए अपने घर में सूर्य की भरपूर रोशनी आने दे , पीपल का पेड़ सामाजिक क्षेत्र में लगाए वह उसकी भरपूर सेवा करे ।
जो अपने पिता का अपमान करते है ऐसे लोगों का सूर्य ग्रह अशुभ प्रभाव देता है ।

जिस बच्चे की कुंडली में सूर्य मजबूत होता है, ऐसे बच्चे के पिता को सेहत व मान सम्मान का सुख मिलता है । मेष व सिंह राशि का सूर्य बहुत ही बलवान होता है। अगर मेष राशि का सूर्य दशम भाव में है तो त्रिखल दोष होता है । यह प्रभु राम के कुंडली में था , मान-सम्मान राम जी को मिला पर वियोग में पिता की हानि हुई । इसलिए ऐसे बच्चों को रविवार को दान करना चाहिए , देवी देवताओं की लाल चंदन का तिलक घिसकर अनामिका उंगली से लगाना चाहिए , लाल फूलों से सूर्य देवता की पूजा करनी चाहिए ।

अगर आपके पिता आपसे नाराज है तो बच्चों को शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को सवा कलो गुड़ नदी में प्रवाहित करना चाहिए और पानी में गुड़ डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । रविवार को अपने पिता को कोई उपहार या गिफ्ट देना चाहिए ।

बच्चे अगर चाहते हैं कि पिता के साथ उनका रिश्ता मजबूत हो तो बच्चों को तांबे के बर्तन में मीठा रखकर कुष्ठ रोगियों को दान देना चाहिए । बच्चों को अपना कमरा अपने पिता के कमरे के पास ही रखना चाहिए।
अपने पिता के जन्म स्थान पर हैंडपंप या पीने के पानी की व्यवस्था करनी चाहिए । अपने घर से बेकार लकडी और लोहे के लोहे का सामान निकाल देना चाहिए । अपने पिता के बेड़ के नीचे चांदी की तार रखें । पिता को दवाई खिलाने से , उनके लिए नए कपड़े खरीदने से , उनको स्वादिष्ट व अच्छा भोजन खिलाने से आपका सूर्य मजबूत होगा ।

अगर पिता का देहांत हुआ हो तो सूर्य को मजबूत करने के लिए आप अपने पिता के पुण्यतिथि पर पांच ब्राह्मण बुलाकर उनसे 108 बार विष्णु सहस्रनाम का पाठ व हवन कराएं । गरीब लोगों को भोजन करवाएं ।

नौकरी या कारोबार में परेशानी आ रही है तो अपने पिता से तांबे या सोने की अंगूठी लेकर अपने पास जरूर रखें । पिता अगर अपने बच्चों के करीब आना चाहते हैं तो पीपल के पेड़ में मीठा जल चढ़ाएं वह सरसों के तेल का दीपक भी जलाए । पिता अपने बच्चों को शनिवार को नीले रंग की कोई भी चीज तोहफे में ना दें । पिता को पांच के लिए गुरुवार को गाय को खिलाने चाहिए। मंदिर में हल्दी का दान करें ।

अगर कोई पिता अपना कर्तव्य अपना काम के प्रति जिम्मेदार नहीं होते तो वह अपने कुल का नाश होते देखते हैं ऐसे पिता को नारायण ही सुधारें।

माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा।।

वह माता व पिता अपने बच्चे के शत्रु है , जो अपने बच्चे के प्रति कर्तव्य निष्ठ नहीं रहते , ऐसा बच्चा उनके कुल का नाश करता है , व वह हंसो के बीच में बगुला प्रतीत होता है । चाहे वह कितना भी ज्ञानी हो जाए ।

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