गुरु शिष्य को कोई भी आकार प्रकार देकर बनाता रुप साकार : माता सुदर्शन जी भिक्षु

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  1. कुरुक्षेत्र : 04 जनवरी :-  आरके शर्मा विक्रमा :– कुम्हार के चाक पर मिट्टी उसी आकार प्रकार में ढलती, बनती चली जाती है। जिसमें उसको कुंभकार ढालता है। स्थानीय श्री गीता धाम की मौजूदा संचालिका और ब्रह्मलीन सदगुरुदेव श्री श्री 1008 नित्यानंद जी महाराज भिक्षु जी की परम शिष्या माता सुदर्शन जी महाराज भिक्षु ने आज सोमवार श्री सदगुरू की  गुरु वंदना के वक्त यह जीव व जीवन को साधने योग्य अनुकरणीय उदाहरण विचार गुरु के चरणों में एकत्रित आस्थावानों में व्यक्त किए।। माता सुदर्शन जी भिक्षु महाराज ने समझाया कि ठीक उसी तरह संतान माता-पिता के आगे और शिष्य अपने गुरु के आगे उसी रंग रूप, उसी शिष्टाचार, अनुशासन व जीवन शैली में, सोच विचार में और सामाजिक, धार्मिक व परिवारिक परिवेश, व्यवहार में ढलता चला जाता है। जिस तरह की उसको शिक्षा, दीक्षा प्रदान की जाती है। उसका मार्गदर्शन किया जाता है। उसको उस सत्कर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी जाती है। उसका सटीक मार्गदर्शन किया जाता है। अगर कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में फेल होता है। तो दोष उसका कम है। गुरु का ज्यादा है। क्योंकि गुरु ने उस फेल करने वाले प्रश्न को सही तरीके से सुलझाना सिखाया ही नहीं है। उसको वह सुलझाने का मंत्र यानी फार्मूला कहते हैं, वह गहनता से उसके दिमाग में बसाया ही नहीं था। इसलिए गुरु को चाहिए कि अपने शिष्य को सही अनुशासन में रखकर शिष्टता का पाठ पढ़ाते हुए भौतिक समाज की जानकारी और उसके अनुकूल चलने की प्रेरणा देनी चाहिए। गुरु कभी भी अपने शिष्य को किसी भी कसौटी पर कच्चा नहीं रहने देता है। गुरु जानता है कि उसके शिष्य में अभी तक क्या-क्या कमियां हैं। उन्हें गुरु अपनी दूरदर्शिता से अपने अनुभवों से अपने सलीके से सुधरता है। और अपने शिष्य को एक परिपक्व गुरु बनने के आधार पर खड़ा कर देता है। बच्चों को विद्यार्थियों को कभी भी कम अंक लाने के लिए दंडित नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें कम अंक लाने वाले प्रश्नों के उत्तर सही तरीके से दुबरा समझाने चाहिए। ताकि जिंदगी में भी अगर ऐसा कोई मुश्किल पड़ाव आता है। तो उससे कैसे बाहर निकलना है। यह सब शिष्य व विद्यार्थी गम्भीर ढंग से सही तरीके से सीख ले। और यह ज्ञान ऊर्जा अर्जित कर ले।।

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