ब्राह्मण अपना ओजस्वी गौरवमई व्यक्तित्व भूल चुके हैं :- आरती शर्मा

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चंडीगढ़: 25 अप्रैल:- आरके शर्मा विक्रमा करण शर्मा:– आज शनिवार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में ऋषि श्रेष्ठ जगदग्नि व माता रेणुका जी के महाबली सुत  भगवान परशुराम  जन्मे का भारत में जन्मोत्सव मनाया गया।।। भगवान परशुराम जहां विष्णु भगवान जी के छठे अवतार कहे गए हैं वही भगवान शंकर के भी परम शिष्य में अग्रणी स्थान पर विराजमान हैं दुनिया आपको पितृ भक्त के रूप में स्मरण करते हैं।‌ आप अस्त्र शस्त्र व शास्त्र के ज्ञाता और धरती से पापियों  पाखंडी  व अहंकारियों का 21 बार समूलनाश करने के लिए स्मरण किये जाते हैं।।

पंडित चंद्रमोहन शास्त्री ने भगवान परशुराम की स्तुति करते हुए कि भगवान विष्णु जी के छठे अंशावतार ने वैशाख मास की अक्षय तृतीया को जन्म लिया था। अक्षय का अर्थ है जिसका क्षय ना हो।। भगवान शंकर ने परशुराम को अस्त्र-शस्त्र की अतुलनीय शिक्षा प्रदान की थी ।

नृसिंह पीठाधीश्वर रसिक महाराज परशुराम जन्म उत्सव के दिन यानी अक्षय तृतीय का महत्व बताते हुए बोले कि अक्षय तृतीय ही युगाधि तिथि यानी कि इसी दिन सतयुग और त्रेता युग की प्रारंभ तिथि भी है। इस दिन हर तरह के शुभ कार्यों के लिए हर क्षण शुभ फलदाई रहता है।‌‌महाभारत का 18 दिन कुरुक्षेत्र में चलने वाला महा समर भी अक्षय तृतीया को ही समाप्त हुआ था।।

आज हिंदू ब्राह्मण समाज ने  भगवान परशुराम का जन्म उत्सव बड़े हर्षोल्लास और भक्ति में वातावरण में घर पर रहकर मौजूदा परिस्थितियों के साथ चलते हुए सोशल डिस्टेंसिंग और लोक डाउन का ध्यान रखते हुए मनाया। रात्रि को दीपमाला की गई। और एक दूसरे को धर्मवत शुभ फलदाई संदेश भी सोशल नेटवर्किंग के जरिए आदान प्रदान किए।। आरती शर्मा, महिला प्रदेश अध्यक्षा, राष्ट्रीय ब्राह्मण परिषद और विश्व ब्राह्मण परिषद पंजाब प्रदेश ने ब्राह्मण जगत को परम आराध्य भगवान परशुराम के जन्म उत्सव की मांगलिक शुभकामनाएं दीं। और ब्राह्मण समाज को चेताया कि शस्त्र और शास्त्र व शासन अलंकार पौराणिक युगों में ब्राह्मणों के श्रृंगार थे जिन्हें आज व्यसनी ब्राह्मण, लोभी ब्राह्मण अपने स्वाभिमान और गौरवमई ओजस्विनी पराकाष्ठा निसंदेह भूल चुके हैं। भगवान परशुराम ब्रह्मांड के पहले ब्राह्मण, जिन्होंने शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ अस्त्र शस्त्र ज्ञान भी अर्जित किया। और इसे गुरु शिष्य की परंपरा का पर्याय बनाते हुए देवव्रत भीष्म जो शांतनु और गंगा के पुत्र थे।। और आचार्य द्रोण सहित सूर्य के तेज से कुंती की कोख से जन्मे महान दानवीर कर्ण को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान की। भगवान परशुराम शिक्षा के साथ-साथ शक्ति के भी अखंड पुंज हैं। भगवान परशुराम आज भी युगों  युगो से अजर अमर हैं।।

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